Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 69
________________ पंच १३१-१४१ । पसंतषिलास मा पादान्ते विलुठ विरम स्वामिनो हि स्वतन्त्राः कश्चित् कालः क्वचिदपि गतस्तेन कस्तेऽपराधः । आगस्कारिण्यहमिति यतो जीवितं त्ववियोगे भर्तुः प्राणाः स्त्रिय इव ततो यन्मयैवानुनेयः ॥ १३९ [७१] मुरकलई मुह मचकोडइ मोडइ ललवल अंगु । वानि सोवन्न वखोडइ लोडइ नितु नवु रंगु ॥ १४० - उन्नमय्य सकचग्रहमास्यं चुम्वति प्रियतमे हठवृत्त्या । अंह अंह अह अंह मनोज्ञ जल्पितं जयति मानधनायाः ।। १४१ a. क. लालीअ; एकि रे दिई; ख. छंदि रास; ग. एकिहिंई सहि लालीय तालीय छंदिहिं रासु, घ स in the place of सहि; and छंदिसु in the place of छंदिहिं. b. क. एकि रे दिइ; वालंभ रहि; स. उपालंभु वालंभ रहि; ग. एक देई उपालंभ रे वालंभरई सवि. साल; घ एकि दिई उपालंभ वालंभ रहदं सविलासु. घ. O0. St. 69. - - 139. क, ख, ग have the same stanza मा पादान्ते etc. between OG. stanza. 70 and 71. 9, however, has a corrupt Pkt. stanza the text of the first line of which is given by the scribe and rest of it is not given by him. The text is: श्लो.. दोलासु विभ्रमवदीसु नियदिट्टी दिकखरिह...तुरंगरहो दिणेसो ॥७॥ क. स. b. कालं for काल; ख. c. प्रायः प्राणी ययमिव जनो जीवितस्त्वद्वियोगे; क... d. भर्तुः प्राणाः स्त्रिय इति ततो यन्मयि वावानुनेयः can be correctly read भर्तुः प्राणाः त्रिय इति ततो यन्ममेवानुनेयः । ग. a. भर्तुः प्राणाश्रयमति तथा जन्मय: यौवनेन. The text Is.corrupt in all the. Mss. क, ख. and. ग, घ does not contain this stanza. .. 140 a: क. महु for मुह; ख. मुरकलई:मुख मचकोडइ मोडइ ललवल अंग; ग. मुरकलह मुह मचकोडइ मोडई ललवल अंग; घ.. मुरकलई मुख मचकोडई मोडई ललवल अंग. b. क. सुक्न for सोवन; ख. वानि स धनुष वखोडए लोडए चितु सुरंगुः ग. वानि सोवन वषोडए ई ए लोडई एनितु नवा रंग. घ. does not give this line and closes up the ६० ॥७१॥. घ. OG. St. 71. .. .. .. . . 141: In- क, ख, there is no Sk. stanza between 00. St. 71 and .72; while. ग gives the stanza :: :उन्नमय्य सकचग्रहमास्य etc. after .. ou. verse 71-मुरकलइ....नितु नवु रंगु. घ also agrees with the ग in giving this verse. a, however, gives this verse between OG. St: 72 :and.73; while n does not give this stanza at all. ख. a..': उन्नमन् in the place of उन्नमय्य, ख. b. प्रियतमो for प्रियतमे. ख. d. जल्पति for जल्पितं. ग. a. सकुचप्रहमास्य; ग. c. मुंच: मुंच मममेति मनोन्य. ग. d. जल्पितं जयंति मानधनायाः ।। घ. C. अहह अहह अंह मनोन्यं. प. Sk:. St..71. .

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