Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 67
________________ पंच १२८-१३२ ] वसंतविलास पश्चाननं परिभवत्युदरेण वेणीदण्डेन कुण्डलिकुलं शशिनं मुखेन । या सा जगत्त्रयजयप्रथिता नताङ्गी बुद्धया कया बत बुधैरवला वभाषे ॥ [६५] कुच बेउ अमीकलसा पणि थापणि तणीअ अनंग । ..तीह चु राखणहारु रे हारु कि धवल भूअंगु ॥ १२९ कलशे निजहेतुदण्डजः किमु चक्रभ्रमकारितागुणः । स तदुच्चकुचौ भवन् प्रभाझरचक्रभ्रममातनोति यत् ॥ १३० [६६] नमणि करई न पयोधर योध रे सुरतसंग्रामि । कंचुक त्यजई संनाहु रे नाहु महाभड पामि ॥ १३१ निगदितुं विधिनापि न शक्यते सुभटता कुचयोः कुटिलभ्रुवाम् । सुरतसंयति यो प्रियपीडितावपि नतिं न गतौ गतकञ्चुकौ ।। १३२ - 128. क, ख, ग have the printed text St. in common; while ___has the following Sk. stanza घ. [Sk. St. No. 64]: अधरः किसलयरागः कोमलविटपानुकारिणी बाहू । प्रच्छायसुलभनिद्रा दिवसाः परिणामरमणीयाः ॥ 129. a. ख. कुच वि अमीयकलसा पणि थांपणि तणीय अनंग; ग. कुच वेअ अमी करिसा पणि थापिणि तणी अनंग; घ अमीमय कुचकला पुणि थांपणि तणीय अनंग । b. ख तीह : चउ राखणहारु कि हारु कि धवल भुजंग; ग, तीहं च राखणहार रे हार कि धवल भुअंग; घ. तीई चु राषणहार रे हार कि धवल भूअंग. घ. OG. St. 65. - 130. क, ख, ग have this verse in common as in the printed text; while घ has the following stanza [ घ. Sk. St. 65]: अपि तद्वपुपि प्रसर्पतोर्गमिते कान्तिजलेरगाधताम् । स्मरयौवनयोः खलु द्वयोः प्लवकुम्भौ भवतः कुचावुभौ ॥ - 131. क, ख, both have योध र = obviously योध रे; ग. योध रे सरति संग्रामि; घ. नमणि करइ न पयोधर योध रे सुरतसंग्रामि. b. क. दंदुकु तिजई; महाभड; ग, कुच बे तजहं सनाह रे नाह महाभड पामि; घ. महाभड घ. 0G. St. 66, 132. क, ख, ग and घ. Sk St. 66, have all this St. in common. क C. वपि नर्ति न गतिच्युतकच्चुकौ ।..

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