Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 61
________________ पर्व १०२-२०६ वसंतविलास स्विद्यन्मुखं स्वीकृतमन्दहासं वल्गत्कुचं व्याकुलकेशपाशम् । पुण्यातिरेकात् पुरुषा लभन्ते सम्भोगमम्भोरुहलोचनानाम् ॥ १०२ [५२] कामिनी नाहलां जी सुख ती मुखि कहण न जाइ। पामीय नइ प्रियसंगम अंग मणोहर थाइ ॥ संदष्टेऽधरपल्लवे सचंकितं हस्ताग्रमाधुन्वती मा मा मुञ्च शठेति कोपवचनैरानर्तितभूलता । सीत्काराश्चितलोचना सरमसं यैश्चुम्विता मानिनी प्राप्त तैरमृतं श्रमाय मथितो मूढः सुरैः सागरः ॥ १०४ [५३] खूप भरी सिरि केतकि सेत किया सिणगार । ____ . अंगद झलकइ कर बरि उर वरि मोतीअहार ॥ १०५ मालती शिरसि जम्भणोन्मुखी चन्दनं वापि कुमाविलम् । वक्षसि प्रियतमा मदालसा स्वर्ग एवं परिशिष्ट आगतः ॥ १०६ . __102. क, ख, ग contain the verse स्विथन्मुखं etc; while घ contains . . उपरिनिपतितानां etc. घ. Sk. St. No. 49. . ... 103. a. क. मुख कहण न जाइ :ख. नाहुला जो सुख ती मुखि कहण न जाई; ग. . कामिाण नाहुला जं सुख तं सुख कण न जाइ; घ. कामिनी पामइ जी सुख ती मुसि फहण न : जाइ. b. क. प्रामीय; मनोहरु; ख मनोहर, ग.: पामीम नइ प्रीय संगम अंग मणोहर थाइ; घ. : ... पामीय नइ प्रीयसंगम अंग मनोहर थाई. घ..OG. St. No. 50. . . .. 104. के, ख, ग contain. the. same verse in common; while घं contains #ra Heigama fanfesar etc. 9. OG. St. No. 50. : * 105. a. क. धूप भर्या शरि कितकि; शणगार in place of सिंगार; ख. केतुकि; ग. धूप भरी शिरि केतकि सेत कीआ शिणगार; घ. केतकि स्वेत किया सिणगार. b. क. दीसई ते गयगमणीय. नमणीय कुचभरभारि; ख. दीसई ते गयगमणीय नमणीय कुसुम - चइ भारि. The line b. of 5, a, may be well- conipared with the printed OG. ot. 51. The repetition perhaps is an error, for ग. contains . . अंगद झलकह कर वरि उर वरि. मोतीअ हार, which is adopted in the above.. printed text. घ मिलीय ते मंडन सारीय नारीय स्युं भरतारि. घ. OG. St. 51.:.. 106 क, ख, ग, घ contain the same stanza. घ. Sk. St. . 51.

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