Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 60
________________ संतषिलास [ पछ ९७-९०२ . [४९] देसु कपूर ची वालि रे बासि बली सरु एउ। सोवन चांच निरूपम रूपाम पांखुडी बेउ ॥... ९७ आगच्छन् सूचितो येन येनानीतश्च मे पतिः। ... . . प्रथमं सखि कः पूज्यः काकः किं किं क्रमेलकः ॥ ९८ [२०] शकुन विचारि संभाविआ आविआ तीहं वालंभ। . रसभरि निज प्रीय निरखीय हरखीय दिइं परिरंभ ॥९९ गाढालिङ्गनवामनीकृतकुचमोद्भूतरोमोद्गमा . सान्द्रस्नेहरसातिरेकविगलच्छ्रीमनितम्बाम्बरा । मा मा मानद माति मामलमिति क्षामाक्षरोल्लापिनी सुप्ता किं नु मृता नु किं मनसि मे लीना विलीना नु किम् ॥ १०० [११] रंगि रमई मनि हरिसीय सरिसीय निज भरतारि। दीसहं ते गथगमणीय नमणीय कुचभरभारि ॥ १०१ . 97. a. क. कपुर ची; रसु in the place of सर; ग. वली सुर एक; घ. देसु कपूर ची वासि रे वासि धली सर एउ. b. ख. सोवन; पापंदीउ, ग. सोवन चांच निरूपम रूपम. पाषढी बेउ. घ. OG. St. No. 47.. 98. क, ख, ग contain the same verse in common; while घ contains गाढालिगनवामनीकृतस्तनः etc. which is the same verse as 100. in the printed text. घ. Sb. St. No. 47. . 99. a. क. संभावीया आवीया, ख. तीहं for तीह; संभावीया आवीया; ग. शकुनिविधारि... तीहे वालंभ; घ. शकुनिविचारि. b के निशार निज प्रीअ निरखीअ हरखीभ दिई परिरंभ, ख. रसिभरि निज प्रिय निरपीय हरिपिय दिइं परिरंभ; ग. निमिभरि निज प्रिय निरषोभ हरषीम दिई परिरंभ; घ. रसभरि निज प्रीय निरपीय हरपीय दिइं परिरंभ. घ. OG. St, No. 48. - 100. क, ख, ग contain the same verse गाढालिंगन etc.. which is ' in घ. Sk. St. No. 47 = our printed St. 100; while घ contains here आगच्छन् etc. = printed St. 98. घ. Sk. St. 48. ग calls this No. . 100 and the mistake of numbering begun with 92 stands corrected. 101. a. क. हरपीअ; ग. रमझ; हरपीअ सरसीअ...भरतार; घ. हरसीय सरसीय. b. क. नमणीम कुंचयुगभारि; ख. कुचयुगभारि; ग. दीमई ते गयगामिणीभ नामणी कुचफलभारि. घ. QG. St. No. 49.

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