Book Title: Vasant Vilas Fagu
Author(s): Madhusudan Chimanlal Modi
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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वसंतविलास . [पच ५२-३२ अधरे यदि जानीयुः सुधा वसति योषिताम् ।
समुद्रमथनारम्भं न कुर्युरमरास्तदा ।। [२४] हरिण हरावइ जोतीय मोतीय ना सिरि जाल ।
रंगु निरूपा अधर रे अधर किया ति प्रवाल ॥ ५३ (६२)
सुतनु वितनु वाचं मुञ्च वाचंयमत्वं ... प्रणयिनि मयि मानं किङ्करे किं करोपि । अथ यदि तव चित्ते सापराधोऽस्मि तस्मान्निजभुजयुगवल्लीपाशवन्धे विधेहि ।। सरसीः परिशीलितुं मयागमि कम्पीकृतनैकनीता। अतिथित्वमनायि सा दृशोः सदसत्संशयगोचरोदरी ॥ ५५ हृतसारगिवेन्दुमण्डलं दमयन्तीवदनाय वेधसा ।
कृतमध्यविलं विलोक्यते धृतगम्भीरखनी खनीलिमा || ५६ . [२५] बाहुलता अतिकोमल कमल मृणालसमान ।
जीपइ उरि पंचानन कानन नही उपमान ॥ ५७ (६४)
कसिणकलिओ पहोलइ वेणीदंडो थणाण मज्झम्मि।
तुइ सुंदरि पुरय महानिहाणरक्खाभुयंगो च ॥ ५८ [२६] अमिय कलश कुच तापणि थापणि तणीय अणंग।
तिह नउ राखणहारु रे हारु कि धवल भुयंगु ॥ ५९ (६५) ‘मृद्वनि कठिनौ तन्धि पीनौ समुखि दुर्मुखौं । ..
अत एव बहिर्यातौ हृदयान् ते पयोधरौं ॥ ६० स्वकीयमुदरं भित्त्वा निर्गतौ च पयोधरौ।।
परकीयशरीरस्य भेदने का कृपालुता ।। आभाति रो[2. A.]मराजिश्चलदलिकुलकोमला विशालाक्ष्याः। . नामिविवरान्तनिर्गतमदनानलधूमलेखेव ॥ .. . ६२ 58. b. भुयंगु ध्व. 60. a. दुर्भुखों... 60. b. वहिर्यातो. 62. a. सुरति संप्रामि . 62. b. समाहु for सन्नाहु.

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