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वरंगचरिउ
17 निश्चित रूप से अपभ्रंश का साहित्य संख्या में कम होने पर भी गुण और ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि है। इस समस्त साहित्य का अध्ययन करने के लिए उसका वर्गीकरण आवश्यक है। विषय-विस्तार की दृष्टि से सम्पूर्ण अपभ्रंश साहित्य को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. जैन अपभ्रंश साहित्य, 2. बौद्ध सिद्ध अपभ्रंश साहित्य,
3. शैव अपभ्रंश साहित्य, 4. ऐहिकतापरक अपभ्रंश साहित्य। 1. जैन अपभ्रंश साहित्य
__जैन अपभ्रंश साहित्य की धारा हमें 7वीं ई. से सोलहवीं-सत्रहवीं सदी तक प्राप्त होती है। धर्म और साहित्य का अद्भुत मिश्रण जैन कवियों ने किया है। जिस समय जैनकवि काव्य-रस की ओर झुकता है तो उसकी कृति सरस काव्य का रूप धारण करती है और जब धर्मोपदेश का प्रसंग आता है तो वह उपदेशात्मक कृति बन जाती है।' __प्राकृत की तरह इसमें भी मुक्तक और प्रबन्ध दो तरह की रचनाएँ मिलती है। मुक्तक-काव्य की एक उपशाखा 'रहस्यवादी धारा' कही जा सकती है, जिसके अन्तर्गत महाकवि जोइन्दु का परमात्मप्रकाश एवं योगसार, मुनि रामसिंह का पाहुड़दोहा और सुप्रभावाचार्य का वैराग्यसार इस धारा के महत्त्वपूर्ण कवि एवं उनकी रचनाएं हैं, इनका विवेचन इसप्रकार किया जा सकता है
परमात्म प्रकाश-यह कृति आचार्य जोइन्दु (योगीन्द्र) द्वारा रचित है। ये अध्यात्म साधना में लवलीन जैन साधु थे। इसलिए इन्हें अध्यात्मवादी कहा जाता है। ये बहुत ही उदार, कोमल, निःस्पृह एवं निर्भीक संत थे। इनके मिलते-जुलते अनेक नाम प्राप्त होते हैं-जोगिचन्द्र, योगीन्द्रदेव एवं योगीन्द्राचार्य। योगीन्द्र प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने दोहा-छन्द में शुद्ध अध्यात्मपरक रचनाएँ लोकभाषा में प्रस्तुत की हैं। वस्तुतः कवि का मुख्य उद्देश्य अध्यात्म विषयक तथ्यों की अभिव्यक्ति रहा है। इनके विचार वेदान्त के निकट है। इन्होंने बाह्याडम्बरों का विरोध किया है। अध्यात्मवादी कवि जोइन्दुदेव ने स्वयं अपने संबंध में कोई सूचना नहीं दी है। डॉ. ए.एन. उपाध्ये जी के अनुसार (परमात्मप्रकाश की भूमिका) इनका समय 6वीं शताब्दी अनुमानित है।
भट्ट प्रभाकर इनके प्रधान शिष्य थे। इन्हीं के शंका-समाधान के हेतु दो प्रमुख कृतियों की रचना की-परमात्मप्रकाश एवं योगसार।
यह कृति 337 छंदों में रचित कवि की प्रधान कृति है। इसमें अध्यात्म और तत्त्वज्ञान के विविध विषय योजनानुसार वर्णित हैं। भट्ट प्रभाकर के शंका समाधान का क्रमबद्ध ढंग से दार्शनिक विषयों की ऐसी चर्चा की है, जो मानव जीवन को उद्वेलित करने में सक्षम है।
यह ग्रन्थ दो अधिकारों में विभक्त है-प्रथम अधिकार में आत्मा-परमात्मा का स्वरूप, द्रव्य, गुण, पर्याय, कर्म, निश्चय, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यात्व आदि तथा द्वितीय अधिकार में मोक्ष का स्वरूप, 1. अपभ्रंश : एक परिचय, कमलचंद सोगानी, पृ. 7-8