Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 223
________________ परिशिष्ट (क) विशिष्ट धार्मिक शब्दावली वरंगचरिउ में अनेक धार्मिक और दार्शनिक शब्द प्राप्त होते हैं, जो धर्म के प्रतिपादन में बहुत ही सहकारी हैं। उनका विवेचन इस प्रकार हैअच्चण (अर्चना) (जिणु वंदण-अच्चण-थुइ करेइ) 4/16 पूजा के अर्थ में अर्चना शब्द उपयोग किया जाता है, क्योंकि महापुराण' में पूजा का अपरनाम अर्चना प्राप्त होता है। उसमें पूजा के अनेक पर्यायवाची दिये गये हैं, जो इस प्रकार हैं-याग, यज्ञ, क्रतु, पूजा, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख, मह और अर्चना। अट्ठवि मय (आठ मद) 4/22 मद का सामान्य अर्थ है-गर्व करना। मद के जैन वाङ्मय में आठ प्रकार प्रतिपादित हैं-ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, ऋद्धि, तप और शरीर। इन आठों के आश्रय से गर्व करना मद कहलाता है। मुनि इन आठ मदों के त्यागी होते हैं। अणत्थदंड (अनर्थदंड व्रत) 1/16 प्रयोजन रहित पाप बंध के कारणभूत कार्यों से विरक्त होने को अनर्थदंड व्रत कहते हैं।' अनर्थदंड के पांच भेद होते हैं (1) पापोपदेश-तीव्र पापबंध के कारणभूत कार्यों का उपदेश देना। (2) हिंसादान-हिंसा के कारणभूत हथियारों एवं उपकरणों को देना। (3) अपध्यान-दूसरों के प्रति बुरा विचार करना। (4) दुःश्रुति-रागादिवर्धक खोटे शास्त्रों का सुनना। (5) प्रमादचर्या-निष्प्रयोजन यहां-वहां घूमना, पृथ्वी खोदना, वनस्पति आदि का तोड़ना। अहिंसा 1/10 ___ अहिंसा का स्वरूप पूज्यपाद स्वामी ने प्रतिपादित किया है कि मन, वचन, काय के संकल्प से और कृत, कारित, अनुमोदन से त्रस जीवों को जो नहीं मारता है, उस क्रिया को अहिंसा कहते 1. महापुराण, आ. जिनसेनकृत, 67/193, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, 1951 2. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक 25 3. वही, 4/74 4. सर्वार्थसिद्धि-आ. पूज्यपादकृत, भारतीय ज्ञानपीठ, बनारस, ई. 1955,7/20/358

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