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वरंगचरिउ ऐसी दिगम्बर प्रतिमाएँ वीतराग स्वरूप वाली होती हैं। प्रतिमा दो प्रकार की प्राप्त होती है।
अकृत्रिम प्रतिमाएँ-जिन प्रतिमाओं को न किसी ने बनाया है और न कभी विनाश स्वरूप हैं अर्थात् मेरु पर्वत, कूट-भवन-विमान व चैत्यवृक्षादि में आगम वर्णित अनादि अनिधन रूप अकृत्रिम प्रतिमाएँ होती हैं।
___ कृत्रिम प्रतिमाएँ-चक्रवर्ती या राजाओं तथा मनुष्यों द्वारा स्वर्ण-रजत, सप्त धातु-पाषाण व रत्नमय निर्मित प्रतिमाएँ कृत्रिम प्रतिमाएँ कहलाती हैं। पडिहरि 3/4
प्रतिनारायण-जैन पुराण में 9 प्रतिनारायणों का उल्लेख शलाका पुरुषों के अंतर्गत किया गया है, जो इस प्रकार हैं-अश्वग्रीव, तारुक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रहरण, रावण और जरासंध । ये नौ प्रतिनारायण युद्ध में नौ वासुदेवों (नारायणों) के हाथों निज चक्रों से मृत्यु को प्राप्त होते हैं और नरक में जाते हैं। पमाण (प्रमाण) 4/16
'प्रमीयतेऽनेनेति प्रमाणम्' अर्थात् जिसके द्वारा पदार्थ जाना जाता है, उसे प्रमाण कहते हैं। अपना और पदार्थ का निश्चयात्मक ज्ञान प्रमाण है। प्रमाण का अर्थ है प्र-प्रकर्ष से अर्थात् संशय विपर्यय आदि का निराकरण करके मीयते-जाना जाता है अर्थात् उसे प्रमाण कहते हैं। प्रमाण के दो भेद-प्रत्यक्ष और परोक्ष।
1. प्रत्यक्ष-स्व और पर के निश्चय करने वाले स्पष्ट; पर-निरपेक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। इसके दो भेद-सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और पारमार्थिक प्रत्यक्ष।
2. परोक्ष-अस्पष्ट ज्ञान को परोक्ष कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम। परभव (दूसरा भव) 1/13
अगला या आने वाली पर्याय/दूसरा जन्म लेना परभव कहलाता है। परतिय/पररमणी/परवणिया (परस्त्री) 1/14
स्वविवाहित पत्नी के अलावा दूसरे पुरुषों की पत्नियां परस्त्री कहलाती हैं। ऐसे ही दूसरों की स्त्रियों के साथ गलत व्यवहार करना, पर-स्त्री सेवन कहलाता है। परिग्गहु/परिग्गहपमाणु 1/16, 4/21
अनाप-शनाप रुपया-पैसा, धन-दौलत जोड़ना ही परिग्रह कहलाता है। धन-धान्यादि परिग्रह का परिमाण कर उससे अधिक में निस्पृहता होना इच्छा-परिमाण व्रत व परिग्रह परिमाण कहलाता है। पुण्णु (पुण्य) 1/10