Book Title: Varang Chariu Author(s): Sumat Kumar Jain Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust View full book textPage 1
________________ पंडिय तेयपाल विरइउ वरंगचरिउ (वराङ्गचरितम्) राणानं नमावीतरागाय॥ ॥ प्रयाविविडियों सहोजियवीस हो । केवलणाणाया यामहे। सुरनरवेयर देण्ययाय रुंदा नूस कम्मा रिविणा सदा ॥] ॥ वसुगु समावेविसि माय रिया मोड गिजे सिहा झा एसा पण विवित्ति याला सिवयऊदरसा विययुगादिसाला वापस रिदो वयसा वृद्धि। निशावर वाणिय काविचल बुझिदिन बंद लरका विदीए। वायर ए माया मिठु हिदी । ए जागा मिसं विसमास किंधित करेस भिकबुतदिनं जाशा मिडिया वसति सुति विवरण सा विमलसु कि तिजे विनुल विद्या दिवंत । जिस लिली गायंडियम दता तेही दिन मुवि। परिवार परमतहास रस राय रदिशी वसंतसंतामतिवमियममदंतामणामुप सिवा तिगया । मग मित्र रचसया॥ध॥ एव हि देन करमिचिरमलुहर सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद डॉ. सुमत कुमार जैन प्रकाशक श्री कुन्दकुन्द कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बईPage Navigation
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