Book Title: Varang Chariu Author(s): Sumat Kumar Jain Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय वीतरागी जिनशासन की महान परम्परा में दिगम्बर जैन आचार्यों एवं जिनवाणी के आराधक विद्वानों के द्वारा किया गया लेखन कार्य सम्पूर्ण जगत को संजीवनी प्रदान करता है । इस कलिकाल में भव्यजीवों को सुख का मार्ग बताने के लिए जिनवाणी ही श्रेष्ठ विकल्प है। जिनवाणी के रहस्यों को समझकर उन्हें आत्मसात् करना ही सुखी होने का एक मात्र उपाय है। पंद्रहवीं शताब्दी के विद्वान कवि पंडित तेजपाल द्वारा रचित 'वरंगचरिउ' नामक इस ग्रंथ को प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। प्रथमानुयोग की मुख्यता वाले इस ग्रंथ में भगवान नेमिनाथ के काल में हुए कुमार वरांग का जीवन वृत्त वर्णित है। आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के पुण्य प्रभावना योग में स्थापित श्री कुन्दकुन्द-कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बई वीतरागी जिनेन्द्र वाणी को जन-जन तक पहुँचाने हेतु संकल्पित है। ट्रस्ट की विभिन्न योजनाओं में अप्रकाशित ग्रंथों के प्रकाशन के साथ-साथ श्रेष्ठ शोधकार्यों के प्रकाशन में सहयोग करना भी शामिल है । वरंगचरिउ ग्रंथ अद्यतन पाण्डुलिपि के रूप में उपलब्ध था। इस पर डॉ. सुमत कुमार जैन ने जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं से शोधकार्य करते हुए डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने इसके सम्पादन एवं अनुवाद में जो महत्त्वपूर्ण श्रम किया है, उसके लिए ट्रस्ट उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है । ग्रंथ की कंपोजिंग एवं सुंदर मुद्रण व्यवस्था में श्री संजय शास्त्री, जयपुर ने जो सहयोग दिया है, उसके लिए हम उनको हार्दिक धन्यवाद देते हैं । आशा है, सुधी पाठकों को प्रथमानुयोग की इस कृति के स्वाध्याय से लाभ होगा तथा अपभ्रंश भाषा के शोध अध्येताओं के लिए यह कृति अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी । - शुभेच्छु अनंतराय ए. सेठ श्री कुन्दकुन्द - कहान पारमार्थिक ट्रस्ट, मुम्बईPage Navigation
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