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वरंगचरिउ
2. वरंगचरिउ : एक परिचय
I. प्रति परिचय वरंगचरिउ की कुल मिलाकर 3 हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हुईं, जो करौली (सवाई माधोपुर), अजमेर एवं नागौर के जैन शास्त्र भण्डारों में विद्यमान हैं। उन्हें क्रमशः K, A, तथा N, संज्ञा दी गई है। तीनों प्रतियां पूर्ण हैं, मात्र करौली (सवाई माधोपुर) प्रति में प्रशस्ति नहीं दी गई है। शेष प्रतियों में दीर्घ प्रशस्ति प्राप्त हुई है, जिनका परिचय इस प्रकार है___K, प्रति करौली (सवाई माधोपुर) पंचायती दि. जैन मंदिर से प्राप्त हुई, जिसमें 56 पत्र हैं। यह पूर्ण प्रति है। इसका आकार 11x4.5 है। इस प्रति की लिखावट गहरी एवं मोटी है। इसमें पहले पेज में 9 पंक्तियाँ हैं इसके अलावा अन्य प्रत्येक पेज में 10 पंक्तियां हैं। कुल 1109 पंक्तियां है। इसमें रचयिता का नाम तेजपाल एवं उनके गुरु विशालकीर्ति का नाम प्रारम्भ में एवं प्रत्येक संधि के अंत में प्राप्त हुआ है। समय का उल्लेख नहीं है। प्रशस्ति भी प्राप्त नहीं होती है। यह प्रति करौली के परम मित्र अनुपम चतुर्वेदी (MSW-Student) के माध्यम से प्राप्त हुई।
प्रति का आरम्भ इसप्रकार है - ___नम श्री वीतरागाय । आचार्य श्री विसालकीर्ति गुरुभ्योनमः ।। पणविवि जिणईसहो. .............
............|| इसका अन्त इसप्रकार है - घत्ता - जो णरूदय वंतउ णिम्मलचित्तउ णिव्बु जि जिणु आराहइ।
जो अप्पउ साइ वि केवलु पायवि मुत्ति रमणि सोसाहइ ।। K, प्रति की विशेषताएं -
1. संयुक्त 'ण' बीच में ही एक बारीक आड़ी रेखा खींचकर दर्शाया गया है। 2. पूर्ण प्रति में चाहे 'छ' संयुक्त अवस्था में या एकत्व रूप में सर्वदा एक ही बनावट (छ)
दर्शायी गई है। 3. संयुक्त 'क्ख' एवं 'ग्ग' की बनावट 'रक' एवं 'ग्र' के रूप में पाई जाती है।