Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust
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वरंगचरिउ इहु घरु पुरवरु लइ रज्जभारु लइ पवर लच्छि णाणापयार।
अण्णु" वि रुच्चइ तं सव्वु लेहि परसुंदर गमणउ णवि करेहि। घत्ता-पई विणु सुह सुण्णउ, णयरु रवण्णउ, पइं विणु रज्जु णिरत्थउ।
मा णियपुरि गच्छहि, इत्थु जि अच्छहि, तुहं जणवइ सकयत्थउ' ||८||
तित्थु जि पट्टणि हउ जाएसमि अरि विद्धंसि इच्छु आएसमि। सुणिवि वयण जामाउर वुच्चइ सुसर तुहारउ वयणु ण रुच्चइ। दइ आएसु तित्थु लहु गच्छमि मायवप्प पयकमलणि यच्छमि । इत्थु वसंतह' दुण्णइ यारउ हउं जणि होसमि णउ अवहारउ । तं णिसुणिवि महिराउ पयंपइ वयणु तुहारउक्किव्वउ संपइ। ता रहवर-मायंग तुरंगइ चामरछत्तइ वत्थ सुरंगइ। दासिय-दासइ रयणहि-रण्णइ अण्णु वि कुमरहो रायइ दिण्णइ। इय सव्वइ वरतणु गिण्हेप्पिणु' सायर विद्धि वणेंदु लएप्पिणु। राउ वि णिय खंधारहो जुत्तउ धम्मसेण णिव णेहासत्तउ।
सत्थि करेवि पयाणउ दिण्णउणिवहु मार चल्लिय कय पुण्णउ। घत्ता- पुर–णयर मुयंतह", सुपहि गमंतह', णियपुरि थोवंतरि गयउ।
जाय वि वणि पेसिउ, वयणुद्दिसिउ, अक्खहि कुमरु समागयउ ।।६।।
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सायरविद्धि परायउ तित्तहि णिसुणि राय वहुकलगुण जुत्तउ
को वरंगु को तुहं वणि सारा तं सुणेवि पुणु वणिवरु भासइ सो वरंगु जो चिरु हरि हरियउ सो वरंगु गुणदेविहि णंदणु इय वयणइ णरेंदु याणंदिउ
धम्मसेणु पहु अच्छइ जित्तहि। णाम वरंगु कुमरु इह पत्तउ। किं कज्जें आयउ गुणधारा। सो वरंगु जो अरिकरि तासइ । सो जो पइं जुवरायइ धरियउ। तुज्झ सुउ' मणणयणाणंदणु। णं वरसागमि तरुगणु णंदिउ।
9.
6. A,K,N, अंण्णुवि 7.N, सकधउ। 1. A,K,N, वसंहहं 2. A,K,N, क्किव्वउ 3. K, तुरंगई 4. A,N, गिण्हेपिणु 5. A,K,N, लएपिणु 6. A, K, N, मुयंतहं 7. A, K,N, गमंतह, K, गिण्हेंपिणु। 1. K, सुर्छ।
10.

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