Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

View full book text
Previous | Next

Page 206
________________ वरंगचरिउ 195 12. आर्नतपुर का निर्माण हे तात! (पिताजी) मेरी बात का तिरस्कार मत करो, शीघ्र ही सुषेण के लिए राज्य दे दीजिए। मैं एक श्रेष्ठ नगर बनाकर सुमनोहर एवं विस्तृत पृथ्वी पर वणिपति के साथ निवास करूंगा। तब पिता सभी वचनों को मानते हैं। जो उचित हो, वह कुमार तुम करो। उस अवसर पर बहुत सेना लेकर माता-पिता के चरणों में नमस्कार करके, समुद्र को चीरता हुआ आगे बढ़ता है। चार मंत्रियों को साथ में लिया, वे चारों मंत्री निर्मल विपुल बुद्धि वाले थे, उनको साथ में लेकर कार्य करता है। उपहसित मन से कुमार चलता है, रास्ते में जाते-जाते फिर उसके द्वारा एक पुराना नगर देखा गया, जहां कोई भी नहीं अर्थात् नरविहीन नगर था। महल आदि पृथ्वी पर गिर पड़े एवं क्षीण थे। राजा के द्वारा उस नगर को देखकर वृद्ध मंत्री से पूछा सुनो तात-यह खाली कौन-सा नगर है और क्या नाम है? जिसका अति उत्पन्न मनोहर पृथ्वीतल और विपुलधाम है। उसको सुनकर फिर कंचुकी बोला-इसका नाम आर्नतपुर है, जिसके घर विचित्र (सुन्दर) हैं, यहां पर कृष्ण और जरासंध हुए हैं और यहां पर दोनों का रौद्र स्वरूप युद्ध हुआ था। इस प्रकार वचनों से (जानकर पश्चात्) वहां नगर में निवास किया। श्रेष्ठघर की रचना की एवं श्रेष्ठमुनि का भी निवास बनाया, तुरंग सेना (बल) भी वहां साथ में रहती है, वरांग के साथ वह कृतार्थ हुए। ____घत्ता-वहां पर घर (शाला) का निर्माण किया, नगर के चारों ओर खाई बनाई, ऊँचा नगर का दरवाजा मंडित किया, जो शत्रु की अखंडितता से युक्त था। जलपान गृह (प्याऊ) निर्मित किया, जल के लिए कुएं भी खुदवाएं। 13. कुमार के समक्ष नकुलाधिप का समर्पण नगर का बाहरी मैदान श्रेष्ठ वृक्षों से आच्छादित है, वन-उपवन में पक्षी और भौंरे बसते हैं। एक बाजार का निर्माण किया, जहां लोग वस्तु लेने जाते हैं, लोगों की सेवा के लिए वस्त्रों का क्रय-विक्रय होता है। राजा ने मनोहारी भवनों का निर्माण किया, जहां पर राजा भोज का नाती रहता है, वह नगर घोड़े, हाथी और अन्तःपुर (रनिवास) सभी से युक्त है। कुमार का शरीर चम्पाफूल के समान है, वह अपने तेज से सूर्य (बालमित्र) को जीतता है जैसे भौंरा कमलनाल को जीतता है। जिनके सोलह वस्त्रों से विभूषित अंग हैं, उनके साथ वरांग रतिसुख पूर्वक प्रमोद करता है और वहां श्रेष्ठ नगर में निवास करता है। एक दिन एक शत्रुराजा पाप कर्म करता है। वरांग कहता है दुष्ट राजा, अतिनिकृष्ट है जिसका नाम बकुलाधिप है, इसको मैं वश में करता

Loading...

Page Navigation
1 ... 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250