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वरंगचरिउ
201 श्वेत एवं रमणीक जिनमन्दिर का निर्माण करवाया गया, अपने हाथों से उसमें नवरचित जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाते हैं, वहां पर बहुत भव्यजन एकत्र होते हैं, फिर राजा मुनिराज प्रवर को दान देते हैं, अनन्तर संघ भी हाथी की तरह वह स्थान छोड़ता है। पश्चात् वहां पर प्रतिदिन लगातार शुद्धिपूर्वक पूजा करते हैं, तीनों समय भव्यजन जिनदेव के दर्शन करने आते हैं, वह चैत्यालय पृथ्वी पर उत्कृष्टता धारण करता है। कुमार में धर्म वैसे बढ़ता जाता है जैसे जल के सींचने पर वटवृक्ष बढ़ता है। राजा जिनेन्द्र देव की वंदना, अर्चना और स्तुति करता है। पूर्वार्जित पाप कर्मों को (निर्जरा) दूर करता है। हिम, शिशिर, बसंत, ग्रीष्मकाल, वर्षा और शरदकाल (षट्ऋतु) में भी अंतःपुर (रनिवास) के समान सुख भोगता है। जिनधर्म को सिद्धान्तसापेक्ष नय एवं प्रमाण से किया करता है। कभी-कभी नगर में हाथी पर सवार होकर भ्रमण करता है, राजा (वरांग) के साथ बहुत से लोग चलते हैं, अनेक वणिक क्रीड़ा करते हैं और कामिणी संयुक्त होकर अनुसरण करती है।
घत्ता-वहां पर राज्य करते हुए, लोगों का पालन करते हुए अनुपमा देवी के पुत्र (उत्पत्ति) उत्पन्न होता है। राजा धन एवं सोना का दान देता है, पुत्र का नाम सुगात्र रखा गया।
17. वरांग कुमार का वैराग्य प्रतिदिन बालक ऐसे बढ़ता है, जैसे नूतन चन्द्रमा की कलाएं बर्धित होती है, फिर पुत्र सुन्दर शरीर सहित यौवन अवस्था को प्राप्त करता है एवं अनेक लक्षणों को प्राप्त करता है। इस प्रकार एक दिन राजा अपने घर में पलंग पर सोता है, रात्रि समय ब्रह्ममुहूर्त काल में नेत्रों से दीप समूह को देखते हैं कि तेल का अभाव होने पर दीपक की लौ (ज्योत्स्ना ) नष्ट हो गई। जैसे अपने काल में दीपक कवलित हो गया, वैसे ही राजा के मन में विरक्ति उत्पन्न हो जाती है। बेचारा! मनराग कैसे विनष्ट हुआ, जैसे सूर्य के पहुंचने पर अंधकार समूह नष्ट हो जाता है। तब वरांग मन में चिंतन करता है, परिग्रह का त्याग कर, घोर-तप धारण करूंगा। जिस प्रकार तेल के अभाव में दीपक नष्ट हो गया, उसी प्रकार मनुष्य की आयु विघटित हो जायेगी।
पत्ता-दीर्घकाल से दूसरों के बल (शत्रुबल) जीतते हैं, पृथ्वी का भोग करता है और फिर निश्चित ही मरण होगा। अरे अरे! दुःखकारक, राज्य असार है, मैं तो महाव्रत को धारण करूंगा।
18. संसार की असारता तन, धन और यौवन युक्त अपना जीवन, संसार में सब कुछ इन्द्रधनुष की तरह क्षणभंगुर है। लावण्य, वर्ण (रंग) और परिवारजन का संयोग (सुयण) जल के बुलबुले के समान क्षणभंगुर