Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 211
________________ 200 वरंगचरिउ सुणिऊण वयण जिणहरु विसालु लहु तेण कराविउ छुह रमालु। काराविवि पडिमइ करि पतिट्ट वहु भवियण मेलिवि णव रइट्ट । पुणु दिण्णउ रायइ पवरु दाणु संघु वि मोक्कल्लिउ करि समाणु । तहो पच्छइ पुज्ज करंतयाहं दिणि-दिणि अणवरयति सुद्धयाहं । जिणु वंदहि भवियण तिण्णिकाल तहो चेयालइ महि धरिवि भाल। परिवड्डइ धम्मकुमार केम जल सिंचिउ तरु णग्गोह जेम। जिणु वंदण-अच्चण-थुइ करेइ पुव्वज्जिय कलिमलु अवहरेइ। हिमसिसिरवसंतइ गिंभयालि अण्णु वि वरसालइ सद्दयालि। सुह भुंजइ अंतेवर समाणु जिणधम्म कुणंतउ णयपमाणु। कइयावि भमइ परि चडिवि हत्थि वरणिवकुमार वह लेवि सत्थि। कइया वणिकं कीला करेइ कामिणि संजुत्तउ अणुसरेइ । घत्ता- तहि रज्जु करंतह', जणु पालंतह', अणुवम देविहि" सुउ जणिउ । रायइ धणु दिण्णउ, कंचण वण्णउ, तासु सुगत्तु णामु भणिउ ।।१६।। 17 पुणु दिणि-दिणि वड्डिउ वालु केम णवणिसियर कलगुरु होइ जेम। पुणु णंदणु जोवण-भारु पत्त लक्खणलक्खं किय चारुगत्त। ता इत्तहि' पहु इक्कहि दिणम्मि पल्लंकिय सुत्तउ णिय हरम्मि। णिसि समयहि वम्हमहुत्तकालि ___णयणहि पिच्छंतह दीवमालि। हुय तिल्लहीण जुण्हा विणट्ठ पुणु पिक्खंतयह सुतेउ णट्ठ। णियकालें कवलिय दीव जाम णिव मणि जायउ णिव्वेउ ताम। मणराउ विणट्ठउ वप्प केम दिणमणि पत्तइ तम णियरु जेम। ता मणि चिंतइ वइ वरंगु राउतउ चरमि घोरु करि संगचाउ। जह दीव विणट्ठय तिल्लहीण तह णरु विहडेसइ आव खीण। घत्ता- चिर परवलु जित्तउ, धरयलु भुत्तउ, णिच्छइ पुणु वि मरेसमि। हो हो दुहयारउ, रज्जु आसारउ, महवयभारु धरेसमि।।१७।। ___2.N, छूह 3. A, वरसारुइ 4. A,K,N,करंतहं 5. A,K,N, पालंतहं 6. K, देविहिं 17. 1. K, इत्तहिं 2. K, इक्कहिं 3. A, K, पल्लंकिय 4: K, समयहिं 5. A, णयंणहि, K, णयणहिं 6. A,K,N, पिक्खंतहं

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