Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust
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वरंगचरिउ मरणहो भएण कुच्छियवि देव सरणु वि पइसइ पुणु करइ देव । विज्जहु घरि गच्छइ भइ धरंतु महु रक्खि -रक्खि वयणइ भणंतु। सो के रक्खइ विज्जु वि मरेइ
असरणु वि भवावलि संसरेइ। घत्ता- किवि सुर-सुह पावइ, हय णिरु आवइ, वरदयधम्म पसायएण। किवि णरयहु गच्छइ, वहु-दुहु पिच्छइ, तिव्व कसाय पहावएण||१६||
20 किवि होइ तिरिउ वहुजोणि भेय किवि हुंति मणुय सुह-दुह णिकेय। सा कवण जोणि जा मइ ण लद्ध सो जीउ कवणु जो मइ ण खद्ध। सा कवण माइ जहि हउं ण जाउ सो कुलु ण जो वि ण उवण्ण काउ। सा धरणि ण जहि णउ भमिउ आसि ____ सा णारि ण भुत्तिय ण विदुरासि । सो हंसु ण जहि महु तणु णक्ख । सो वंधणु णवि जहि हउं ण व । जगि जोणि भमंतह' सव्वजीव वंधव संजाया जाणि जीव। एकल्लउ सुह-दुह लहई पाणि सरिसउ णवि चल्लइ भणहि णाणि। कुच्छियइ कलेवरि रइ करेइ
मोहंधु जीउ णवि तउ करेइ। पावें कम्मासउ करइ णिच्चु
कम्मासइ दुहु पावइ अणिच्चु । किवि संवरु करइ वि सुद्धभाव जह संवरु तह णिज्जरसहाव। इह इक्कु वि दुल्लहु मणुय जम्मु पुणु अण्णु वि दुल्लहु परमधम्मु ।
धम्में विणु कहि पावियइ सुक्खु धम्मु वि किज्जइ जो हणइ दुक्खु । घत्ता- तइलोय सहाव, तत्तु वि भाव, मणि चिंतिवि ता णरवरेण।
पुणु हुयउ पहाउ, रविहि पहाउ, जायउ णवर वि वित्थरेण ।।२०।।
21
पुणु चेयालइ जिणु वंदेप्पिणु' धम्मसेण णिव पुरइ परायउ। णिसुणि ताय णरवइ चूडामणि इय वयणइ णरेंदु गंजोलिउ करि गिहमज्झि धम्मु सायारउ पइं विणु को मणु महु साहारइ
पुत्तु सुगत्तहो सरिसउ लेप्पिणु । जो महि मंडलि इक्कु वि रायउ। हउं जिण दिक्ख लेमि जगि दिणमणि। हा हा पुत्तु-पुत्तु कहि भोलिउ। जइ वरतउ दुधरू सुहयारउ । पइं विणु को अरिणर अवहारइ।
20. 21.
1. N, भमंतह, A, K, भगंतहं 2. A, K, लहइं 1. A, K,N, वंदेपिणु 2. A, K,N, लेपिणु

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