Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ 210 24. वरंगचरिउ पोल्हणु णामु चउत्थु पसिद्धउ इय चत्तारिवि वंधव जाया रणमलणंदणु ताल्हुय हुंतउ" तेयपाल महु णामु पसिद्धउ एहु सत्थु जो सुइ सुणावइ सत्थु जो महि वित्थारइ पुणु सोभवियणु सिवपुरि पावइ णंदउ णरवइ महि दयवंतउ महि जिणणाहहु धम्मु पवड्डउ कालि - कालि वर पावसु वरिसउ अज्जिय मुणि वरसंघु वि णंदउ जं किंपि विहीणाहिउ साहिउ तं सरसइ मायरिक्खम किज्जहु घत्ता- कम्मक्खय कारणु, मल अवहारणु, हरुह भत्तिमइ रइयउ । जो पढइ पढावइ णियमणि भावइ येहु चरिउ रुइ" सहियउ ।। २३ । । 24 णिय पुणेण दव्वु वहु लद्धउ । वरखंडिल्लवाल विक्खाया। 11. K, N, भणिज्जइ 12. N, तुइ 1. K, भंडिय तासु पुत्त हउं कंइगुण जुत्तउ । जिणवर भत्तिवि वहुगुण लद्धउ । दाणशीलजिणवरपय भत्तउ । धत्ता- जो णरु दयवंतउ, णिम्मलचित्तउ, णिच्चु जि जिणु आराहइ । सो अप्पर झाइवि, केवलु पायवि, मुत्ति रमणि सो साहइ । । २४ । । इय वरंगचरिये पंडियते यपालविरइये । मुणिविउलकित्तिसुपासये । वरंगसव्वत्थसिद्धिगमणोणाम चउत्थसंधी - परिच्छेउ ।। सं. ।। संधि । । ४ । । -- एहु सत्थु जो लिहइ लिहावइ । सोरु लहु चिरमल अवहारइ । जहि जरमरणु ण किंपि वि आवइ । णंदउ सावय जणु वयवंतउ । खेमु सव्व जणवइ परिवड्डउ । सव्वलोउ दयगुण उक्करिसउ । सयल कालु जिणवरु जणु वंदउ । बुद्धि कव्वु विणिव्वाहिउ । अवर वि पंडिय' दोसु म दिज्जहु ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250