Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust
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वरंगचरिउ पुणु पुणु गाढालेंगणु देप्पिणु' पुणु-पुणु परम पसंस करेप्पिणुः। भणइ राउ सुंदर सुणि किज्जइ पुत्ति मणोरम सय सहु लिज्जइ। इय माउलइ वयण णिसुणेप्पिणु" भाइणेउ अक्खइ वि हसेप्पिणु' । पढमइ णियपुरवरि जाइव्वउ णिय तायहो अरिबलु तासिव्वउ। तो पच्छइ जाणिव्वउ चंगउ एवहि करमि ण कज्जु वरंगउ। जा मत्थइ ता णिव पुणु घोसइ वयणु महारउ काइण पोसइ। माउल वयणु ण उल्लंघिज्जइ महु पुत्तिय गहणुल्लउ किज्जइ। कण्णा रयण गणुल्लउ दिण्णउ लइ-लइ णउ छंडहि सुह वण्णउ । तं सुणेवि जा वयणु ण वुच्चइ रायइ मुणिउ वयणु इहु रुच्चइ। पासट्ठिय' णरेहि वोलिज्जइ पहु णियकुमरि वरंगहो दिज्जइ। पुणु वासर सुमहुत्त गणेप्पिणु मंडउ रइयउ हरिसु धरेप्पिणु"। करिवि विवाहु मणोरम अप्पिय पुणु सयकुमरिय अण्णु वियप्पिय । हुयउ विवाहु लोउ आणंदिउ जाइवि चेयालइ जिणु वंदिउ। दिण्णउ दाणु णरेंदिसुभट्टह12 थुय विरइय वंदीयणट्टहा।
पुणु वरतणु वणिगेहि परायउ णववहु लेप्पिणु' कय मणरायउ। घत्ता- णिसि समइ मणोरम, जगि जायउ तम, णियपिय रइरस लुद्धियहि ।
__ पिय पासि पहुत्तिय" रमणहो, रत्तिय, कंतालिंगिउ मुद्धियहि।।७।।
जा चिरु' उपण्णिय मणि ण संख सा पूरिय विहिणा रमण कंख। तमु गलिउ विहावरि हुउ पहाउ उदयायलि पत्तउ दिवसराउ। सह मंडवि सुसरु वइगु जित्थु वरतणु संपत्तउ कुमरु तित्थु। ता भणइ देव अरि हणिउ गब्बु मइ तुम्ह' पसायं लभु सव्वु। एवहि णिय जणणहो पासि जामि पत्थाउ ण अच्छमि इत्थु गामि । आएसु देहि णिवकरि पसाउ तं णिसुणिवि वुल्लइ वयणराउ ।
4. A,K,N, देपिणु 5. करेपिणु 6. A,K,N, णिसुणेपिणु 7. A,K,N, हसेपिणु 8. K, कण्णाय 9. K, पीसट्ठिय 10. A, K,N, गणेपिणु 11. A, N, धरेपिणु, K, धरेपिण्णु 12. A, K, भट्टहं 13. A,K,N, पट्टहं 14. K,गेउहि 15. A,K,N, लेपिणु 16 A,K,N, लुद्धियहिं 17. N, पहुतिय 8. 1. A,K,N, चिरु 2. K, स° 3. A,K, उवयायलि 4. A, तुम्हं 5. K, लघु

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