Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust
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वरंगचरिउ पुणो लवइ भो कामरूवावहारो तुमं सरिसु को अण्णु णउ णिवकुमारो। तुमं रूवयासत्तिया सा कुमारी णियं सोह णिज्जियइ अहिसुरकुमारी। तुमं तेहिं वुल्लाविया सगुणधारा सुतहि' वेगि जाइ जइ वणिकुमार। सुल्लच्छीसु कंतासु गेहम्मि वासो सुप्पुण्णाहिया लहहि वरसुह णिवासो। इमं सुणिवि तिय वयण पभणइ कुमारो मया येहु ण जुत्तयं अजसयारो। जु पाविट्ठ' णिक्किट्ठ लज्जाविहीणो सुणरु रमइ पररमणि अवगुणह लीणो। जु संतो-महंतो-दमंतो-खमंतो सुकें रमइ परणारि कय धम्महतो। सुणरु धण्णि जो करइ तिय संगचाउ सुच्छंदो विएसो भुयं सप्पयाउ। घत्ता- णिय कंतु चएप्पिणु', लज्जमुएप्पिणु', जा परपुरसहो अहिलसइ ।
सा वहु दुह पावइ, हुइ महि आवइ, णरयखोणि णिच्वु जि वसइ ।।३।।
नमल
पिउ छंडिवि सुइर-णिस-रसमाणु चेडियसुउ' सेवइ चइवि माणु। मयणाउर जुव्वण भारपत्त । कज्जाकज्जुय णउ मुणइ रत्त। विणु करगहणुल्लइ रायपुत्ति महु संगु णियच्छइ णिहय जुत्ति। सा के हउं सेवमि पावमूल कामीयण हियवइ देइ सूलु। वयरयणु विहंसि ण णरय जामि मइ परतियवउ किउ णियय गामि। वरदत्त मुणिंदहो पासि लिद्ध सो किं हउं भण्णमि अक्ख-गिद्ध । इय णिसुणि पडुत्तरु सा भणेइ पई सरिसउ णेडु ण अवरुणेइ। तियरयणु रमंतह पाउ होइ तो सुरणर कोवि ण रमइ लोइ। रे कुमर मूढ तुह' धम्महीणु जं कुमरिहि संगि ण होइ लीणु। तिय संगु ज्झिउ सुहु खलि समाणु तिय सहु इंदिय सुह अमयखाणु। पई अक्खिउ परतिय पडहु वज्जु सा णउ परतिय लहु करहि भज्जु । तुहु तिय रयणुल्लउ लेहि-लेहि म चिरावहि सुंदर एहि-एहि। एयंति णियच्छइ व वणपएसि णउ मुणइ कोपि पच्छण्ण-वेसि।
3.
1. K, सुवहिं N, सुताहि 2. N, सुप्पुणाहिया 3. N, णाउ 4. N, प्पविहु 5. A,K,N, अवगुणहं 6. A,K,N, चएपिणु 7. A,K, N, मुएपिणु 1. K,चेडियउउ, 2.N, 'कज्जुया 3. K, तुहं 4. A,K,N, संग्गु 5. A, पइ
4.

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