Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 185
________________ 174 20. वरंगचरिउ पुणु वि उदुसेणु' इं जुज्झइ आइवि वणिवइ बारणु रोडिउ परसुप्परइ समरि चूरंतहं तहु किं कुमरि चक्कु संगहियउ मुयउ उवेंदुसेणु महि णिवडिउ जयसिरि कारण संगरु मंडिउ जो कुंडलमणिमउड धरंतउ जो तणु वत्थाहरणहि भूसिउ घत्ता - हा हा विहि इय संसार गइ, जम रुट्ठइ, रक्ख कवणु करइ सुर णिवडहि किं माणउ || खंडयं - भव्व भडहि इय चिंतियं, पिक्खिवि पडिउ धरत्तियं । देव देव पद्मं णंदणो, रणि मारिउ णिव वंदणो । । १६ ।। इय भडहो वयण सुणि इंदसेणु आरत्तणित्त पज्जलिय देहु -गयवरि चडेवि सो पत्तु जाम दोहिमि संजायउ रणु रउछु वहु किं अक्खमि जो देवसेणु अरि सो भग्गउ णियपाण लेवि जयसिरि पाविय सहु पुहइणाहु इत्तहि कुमारु वरतणु पउत्त पद्मं पुण्णहो अरिवलु गयउ सव्वु पुणु कुमरु पसंसिउ बार बारु पइं रक्खिउ महु पउरकयहु जंतु पइं गुणघणधारा सरिस वृत्त इय वयण भणिवि पुणु तूर देवि गय आरुहियउ परगय तुज्झइ । अहिमुह होइवि रिउ गय मोडिउ । हलि सुर अच्छरिउ जणंतहं । उझत्ति जाइवि सिरु लुहियउ । कम्म विवाउ मुणइ को अहडिउ । सो विहिणा हा हा किं खंडिउ' । सो जिसीसु रुहिरणुहि जि लित्तउ । सो महि णिवडंतउ जणि दूसिउ । राउ वि खं समाणउ । 20 णियपरियण पोसण कामधेणु । अइकोहें पुत्तणिवद्ध णेहु । णिउ देवसेणु संपत्तु ताम । कायरह भयारण णं समुद्दु । णिय सुहड भग्ग पिच्छेवि सेणु । अवर वि मुय किवि भडलग्ग केवि । सुर हि उच्चरियउ साहु- साहु । भो णिव तुह धण्णउ चारुगत्त । तुह पुण्ण पउरु वरभव्व भव्वु । तु सरिस दि ण अवरु मारु । पइं दिण्णिय मेइणि अरिकयंत । किं वण्णमि पद्मं किउ जुत्त जुत्त । पुरवरि पइसारिउ कुमरु णेवि । 2. A, N, उवेंदुसेंणु 3. K, N, विहणा, A, विणा 4. K, खेंडिउ 1. A, K, N, बार-बार

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