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वरंगचरिउ VI. भाषा
वरंगचरिउ की भाषा अपभ्रंश है, जिसकी प्रमुख विशेषता उकार बहुला है, जो वरंगचरिउ में सर्वत्र देखी जा सकती है। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. ऋ के स्थान पर प्रायः अ, आ, इ, उ, ए, या रि आदेश हुए हैं; यथाऋ = अ, कृत = कय (4/1) गृह = घर-3/5
= इ, नृप = णिव (4/2), तृप = तिप्पइ (3/8), तृण = तिण (1/10)
= उ, मृणाल = मुणाल (4/11) ऋ = रि, भ्रातृ = भायरि (3/3) 2. ऐ के स्थान पर ए या इ का आदेश हुआ है, यथाऐ = इ, शैय्यातल = सिज्जायलि (1/8) 3. औ के सथान पर ओ या अउ आदेश हुए हैं, यथाऔ = ओ, सौभाग्य = सोहग्ग (4/3) औ = ओ, कौतुहल = कोऊहलि (4/3) औ = आ, नौका = णाव (3/8) 4. एक स्वर के स्थान पर प्रायः दूसरा स्वर पाया जाता है। यथा-अ = उ, मनुते = मुणइ (3/3) इ = ई, ध्वनि = झुणी (1/8) अ = ए, मर्यादा = मेरउ (4/5) ऊ = ए, नूपुर = णेवर
5. प्रायः अल्प प्राण व्यंजनों का लोप या उनके स्थान पर य, या व श्रुति दिखलाई पड़ती है, यथा
रयणायरू = रत्नाकर (4/1), लोय = लोक (2/1), रुपसार = रुवसार (1/6). दुखसागर = दुसायरि (1/12), अंतेपुर = अंतेवर (4/11)