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वरंगचरिउ 133 वचन सुनकर क्रोध से जलने लगता है, मानो अग्नि में घी डालने से और अधिक प्रज्वलित हो गई हो। हे भील! जो तुमने अनुचित वचन (किरात) कहे हैं, मैं नहीं जानता कि मुझे आज आयु प्राप्त होगी । रे रे ! क्या निष्फलता को झांकते हो। क्या मेरे महान योद्धा पिता को नहीं जानते हो । फिर भी मैं थोड़े से वणिक के शस्त्रों को लूटकर तुम्हें मारने में समर्थ हूँ। भील कुमार मुग्ध होकर वचनों से मारो मारो कहता है, मेरे साथ खड़े हुए पुरुषों को गिनो, मैं क्या प्रत्यक्ष काल नहीं हूँ । पूर्वकाल में मेरे द्वारा अनेक भूमिपालकों को नष्ट किया गया है । .
घत्ता - यमराज के साथ युद्ध करके वहां कौन जीतता है, यह वचन प्रसिद्ध है। उसने तुम्हारे तिरस्कार के लिए युद्ध निर्मित कराया है, तुम्हारे समान कौन भोला है ।
दुवई - काल में कौन-कौन कवलित नहीं होता है। यह जीवन नदी की क्रीड़ा के समान है, जहां कोई ठहरता नहीं है अर्थात् नदी निरन्तर प्रवाहित रहती है । मुझसे आगे का जीवन चाहते हो तो यहां से भाग जाओ ।
10. कुमार वरांग का भील कुमार के साथ युद्ध
मैं हूँ और फिर मेरे पिता महाराज महाकाल हैं, तुम यह भी जान लो, हम दोनों यमराज हैं। तुम कैसे जीवित रहोगे । यमराज की आज्ञा से जीव प्रवेश करता है फिर तुम्हारी सामर्थ्य के अनुसार तुम्हें मारकर तुम्हारी भूमि और धन छीन लूंगा अथवा यदि मेरी शरण में आते हो तो जीवित ही दस दिशाओं में भ्रमण करो। इस प्रकार कटुक वचन कहकर, धनुष-बाण लेकर बाण छोड़ता है, अनगिनत बाणों की कतार बरसती है मानो अकाल में ही वर्षा का आगमन हो गया हो। इन बाणों से अनेक लोग घायल होते हैं। अपनी शक्ति और बल से ही राजा उत्पन्न होता है । काल, बाण और समूह निरर्थक हुए।
कुमार के द्वारा भीलों का बल जर्जरित कर दिया गया। कुमार ने धनुष को धारण कर बाण छोड़े, कोई कांपते हुए पृथ्वी पर गिर गया, किसी का सिर एवं अन्य अंग भग्न हो गये। जिस प्रकार सायंकाल आकाश में लालिमा दिखाई देती है, वैसे ही वह युद्ध भूमि जिस पर धड़, सिर और अन्य अंग पड़े हुए थे, रक्त लालिमा से युक्त हो गई। परस्पर भिड़-भिड़कर योद्धाओं का जीवन नष्ट हुआ, कायर ( डरपोक) अपने जीवन को लेकर भाग गये। कुमार के द्वारा सवर-समूह जूझते हुए वैसे मारा जाता है जैसे मुनिराज कर्मसमूह का नाश करते हैं। अपने बल को देखकर सवर विशेष बाणों की सहायता लेते हैं। पश्चात् अनेक शस्त्रों से नृपपुत्र वरांग घायल होता है। मैं अपने जीवन का त्याग किये बिना नहीं जाऊँगा । मूर्च्छता को प्राप्त करने पर भी सुन्दर (वरांग) पुनः उठता है और रुष्ट होकर भीलों के व्यूह (चक्रव्यूह) को नष्ट करता है।