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वरंगचरिउ
143 हैं। धर्म से ही जनपद (प्रजा) राज-आज्ञा का पालन करती है, धर्म से ही हाथी, घोड़ा, रथ, हाथी-पालकी आदि की प्राप्ति होती है, धर्म के प्रभाव से श्रेष्ठ देव, खेचर आदि चरणों में नमस्कार करते हैं।
घत्ता-धर्म से ही षट्खण्ड का अधिपति (चक्रवर्ती) होता है एवं विधि के अनुसार ऋद्धि की प्राप्ति होती है, पश्चात् धर्म से ही शिवपद (मोक्ष) की प्राप्ति होती है।
इस अतुलनीय सुख एवं ज्ञान की प्राप्ति तेजपाल प्राप्त करता है।
मुनि विपुलकीर्ति की कृपा से पण्डित तेजपाल विरचित इस वरांगचरित में ललितपुर नगरी में वरांगकुमार को श्रेष्ठीपदप्राप्त नाम का द्वितीय संधि परिच्छेद समाप्त हुआ।। द्वितीय संधि ।।