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वरंगचरिउ
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वहां पर श्रावकों का समूह मानो अत्यन्त मनोहर मंदिर में एकत्रित हुआ हो। वह श्रेष्ठ वणिक् अपने-अपने कुलों में जो महान् थे, उन समस्त स्थित लोगों को देखकर तथा रूप और शरीर में सुन्दर ऐसा वणिक् समूह कहता है - यह समय बड़ा धन्य है । जो इसके साथ विवाह करेगा, उसका बहुत बड़ा उपकार होगा। अपने रूप से देवों की अप्सराओं को जीतने वाली यह स्त्री झुके हुए और उन्नत पयोधर वाली है, सुन्दर आभूषणों से सुशोभित शरीर वाली यह कन्या कुमार को दे दी जाए ।
घत्ता - पुनः वणिपति कहता है- धैर्य और प्रसन्न मन वाले हे वणिक पुत्र ! सुनो, यदि तुम्हारी इच्छा हो तो उसके साथ विवाह करने के वचन कहो ।
दुवई - इस प्रकार के वचनों से कुमारी को तिरस्कृत करके पुनः मौन धारण कर लेता है। सभी लोग यही समझते हैं कि अत्यन्त सुन्दर और रमणीय स्त्री के लिए उसकी इच्छा नहीं है । 15. वरांग के लिए श्रेष्ठी पद
पुनः वणिपति (सागरबुद्धि) कहता है - आज एक कार्य करना चाहिए। कुमार के लिए सभी के समक्ष वणिकों में प्रधान श्रेष्ठी - पद दिया जाए । यह सम्पूर्ण कलाओं में पारंगत है एवं इसने दुष्कर संग्राम को जीता है। इसके गुणों का क्या वर्णन करूं, यह उपकार व्रत को रखता है, जो अपने प्रमाणभूत है । पुनः सभी उत्तम - उत्तम (चारु - चारु) कहते हैं। इसमें विचार न कीजिए, शीघ्र ही श्रेष्ठी - पद दीजिए ।
यह मंत्रणा सागरबुद्धि के घर पर करके साथ ही कुमार को प्राप्त किया। उन्होंने शुभ दिन और शुभ मुहूर्त देखकर, ललितपुर नगर के सभी लोगों की उपस्थिति में अपना इन्द्रतुल्य पद कुमारवरांग के लिए दिया । कुमार आकाश में चन्द्रमा की तरह वणिक - प्रधान हुआ ।
धर्म से श्रेष्ठ लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, धर्म से मृगनयनी स्त्रियों का समूह प्राप्त होता है । जिसके अत्यधिक कठिन पयोधर (स्तन) स्वर्ण-घट के समान हैं और रंभा के समान कोमल शरीर है, जिसकी पूर्ण चन्द्रमा के सदृश मुख की प्रभा है, मानो बालसूर्य ने उसे तेज दिया हो, जिसके ओंठ विद्रुम के सदृश मधुर शब्द करते हैं, उन्हें सुनकर ऐसा प्रतीत होता है मानो शीतल जल पिया हो । इस प्रकार ऐसी स्त्री पुण्य से होती है जो नित्य ही अपने पति को वहन करती है । धर्म से पुत्र विनयवान होता है, धर्म से नरपति महान् होता है, धर्म से दुर्लभ भी सुलभ हो जाता है, धर्म से ही लोक में कीर्ति और यश होता है, धर्म से ही विविध प्रासाद (महल) आदि प्राप्त होते