Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust
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वरंगचरिउ जहि सुमहुर सद्दय कलयंठिय वुल्लहि कीर चूय तरु संविय । वहु सावय संकुलु णं जिणहरु एहउ वणु सीसइ अइमणहरु । पिच्छिवि वणिवर सयल णिविट्ठा णिय णियवंसह मज्झि गरिट्ठा। पिच्छिवि वरतणु रूउ रवण्णउ वणिवरगणु भासइ इहु धण्णउ । इह वरपाणिग्गहणु करिज्जइ उवयारहु उवयारु धरिज्जइ। णियरूवें णिज्जिय सुरअच्छर णिविड पयोहराय अइकुच्छर।
एही कण्ण कुमारहो दिज्जइ __ वरआहरणइ तणु पोसिज्जई। घत्ता- पुणु वणिवइ उत्तउ णिसुणि सुय वणियह धीय पसण्णमणु।
लइ-लइ करगहणुल्लउ करहि जइ इच्छहि तो भणिवयणु।। दुवई- इय वयणइ कुमारि अवगण्णिवि पुणु तुण्हीय गिण्हिया। सयलह मुणिउ एहु णवि इच्छइ वरतिय अइ रवण्णिया ||१४ ।।
15 पुणु कहइ वणीसरु वयणु कज्जु महु भणिउ करिज्जइ वप्प अज्जु । एयहु दिज्जइ' पउ वणि पहाणु वरसिट्ठि करिज्जइ णरु पमाणु। इहु सयलकलागमु पारिपत्तु दुधरु समरंगणु जिणण धुत्तु। किं वण्णमि इह गुण अप्पमाण उवयारु वयहं रक्खिय पराण। पुणु सयलहं वुत्तउ चारु चारु लहु दिज्जइ ण करिज्जइ वियारु । एउ' मंतु करेप्पिणु' सिट्टि गेहि वरतण सहु पत्तउ वणु चएहि। सुहिवासर सुमहत्तइ गणेवि ललिताहणयरजणु सयलु लेवि । णियपउ दिण्णउ किउ वणिवरेंदु हुउ वणिपहाणु गयणयलि इंदु । धम्में संपज्जइ पवरलच्छि धम्में तियगणु लभइ मयच्छि' । अइ कढिण पयोहर कणयकुंभ सरिसइ कोमल तणुणाइरंभ। छणइंदु व सरिसउ वयणु भाइ वालक्क तेयविहि दिण्ण णाइ। विद्दुम सरिसाहर सद्बुवीण सीलुज्जल णियपिय पायलीण। एही कामिणी पुण्णेण हुंति णिच्चु वि पिय पडिवण्णउ वहंति।
6. K, णियं° 7. A, K, पोसिजइ 8. N, अवगणिवि 9. N, खणिया 15. 1.N, दिजइ 2. A, K, N, यउ 3.A,K,N, करेपिणु 3. A,K,N, यउ 4.A,K,N,मयच्छिं 5.A,K,N, कामिणि

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