Book Title: Varang Chariu
Author(s): Sumat Kumar Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 159
________________ 148 वरंगचरिउ सोउ करंतह किंपि ण लब्भइ भवियव्वु चिंतिज्जइ सभइ। विहि विवाउ जणवइ बलयारउ सो जि सहिज्जइ अइगरुयारउ। सयलु लोउ जमपुरि जाएसइ रहइ ण मंत कुणंतह भेसइ। वद्धउ आवसुकम्म वि जेतउ । भुजंतह जीविज्जइ तेतउ। अइ आकंदइ जो मणि मूढउ उर-सिर ताडइ सोयारूढउ। केवि सोउ मुंचहि वरपंडिय अरुहागम अप्पाणउ मंडिय। धम्मविवेउ णाणु मणि झावहि जिणवर वयणइ णियमणि लावहि। तत्तुइ सद्दाहाणु करंतह पंचणमोयारइ सुतह। जो जीवह जीविय दिणु अच्छइ सो जमणयरि पयाणउ गच्छइ। धत्ता-वरसद्धहि कंधि चडावियउ मुयउ जणद्दणु भायरेण। सो किं बलहद्दहि' पावियउ विहियइ अइ सोयाउरेण। खंडयं-अहवा मुयउ ण सुंदरो वणि गउ जहि गिरिकंदरो। पज्जुण्णु व आवेसए जइ जीवंतउ होसइ।।३।। पुव्वज्जिय कम्मविवाउ एहु किं किज्जइ हरिस-विसाउ अप्प अहवा किर को अम्हाण रक्ख महि केण ण भुत्ती पुव्वयालि कहि पडिहरि दहमुह अइपयंडु सो धम्मराइ णिउ आउ अंति णिहणिउ लक्खणि पुणु मुयउ सोवि चउदह कुलयर पुणु चक्कणाह हरि-पडिहरि-बल णव-णव पयार कहि' पंडुपुत्त अइवल महंत सुहु-दुहु पाविज्जइ णियइ देहु। विहिअ-सरिस-गइ-संसारि वप्प। करिसइ' तणु होसइ कालि रक्ख। वहु महिवइ कवलिय णिययकालि। जहि अरिवरबल किय खंडु-खंडु। जो सेविज्जंतउ वि वुह पंति। किं अवरु पुरिसु उब्बरइ कोवि। महि भुंजिवि भुंजिवि गय अणाह। कहि कामदेव कहि' दहदसार। ते पुण णरहिय जममुहि पडत। 4. A,K,N, करंतहं 5. A, अप्पाणउं 6. A,K,N, करंतहं 7. A,K,N, सुमरंतहं 8. A, K, N, जीवहं 9. K, वलादहि 1. K, करिसई 2. A, K,N, कुवलयर 3. A, K, कहिं 4. A,K, कहिं 5. A,K,N, कहिं ण रहिय पाठ को संयुक्त पद मानते हुए णरधिप का अपभ्रंश णरहिय बनता है। णरहिय पाठ लेने से पाठ के अर्थ की संगति बैठ जाती है।

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