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वरंगचरिउ
__121 2. वनस्त्री की कामेच्छा यह चिंतन कर धर्म के प्रताप से देवी के द्वारा उपसर्ग (विपत्ति) का निवारण किया जाता है। वहां तालाब के किनारे कुमार पहुंचता है, जो जल-जन्तु विशेष से युक्त था। फिर वह स्त्री पत्नीरूप में रमण की इच्छा करती है। उसने स्त्रीरूप में आस्वादन करने के लिए गमन किया। वहां धर्म परीक्षा का विचार नहीं है। वन में काम क्रीड़ा के लिए मानो वह नाग स्त्री हो, उसके उन्नत स्तन अत्यधिक प्रिय और कठिन थे मानो काम क्रीड़ा के लिए पर्वत की तरह उतंग हो, बिम्ब के समान अधर (ओष्ठ) एवं दीर्घ नयनों वाली (दीर्घनेत्रा), उसका सुन्दर शरीर तो श्रेष्ठ मुनिराज का भी मन मोह सकता है। पैरों की पायल से भू-भाग का अभाव किया है और फिर वह खन-खन की आवाज कर रही है। वह अलंकार सहित ऐसी प्रतीत होती है मानो उसके पुण्य की गाथा हो। वह विरहीजन के हृदय एवं शरीर में दाह (ताप) उत्पन्न करती है। कुमार के द्वारा उसके सुन्दर शरीर को देखा गया। वह पूछता है-हे सुन्दरी! यहां पर कैसे पहुंची? तुम्हारा कौन-सा नगर है? तुम्हारे कौन पिता हैं? हे सखी! मुझे अनुराग सहित कहो। वह कपट और हर्ष से बोलती है-मैं गगनचर नराधिपति की पुत्री हूँ, मुझे अपराध के बिना पिता के द्वारा त्याग किया गया है, वन में रहती हूँ और अभी यहां पहुंची हूँ। हे सुन्दर! मुझे तारो। मैं श्रेष्ठ काम व्याधि (काम पीड़ा) से खीझ गई हूँ। मैं तुम्हारी कामिनी (पत्नी) हूँ और तुम मेरे कंत (पति) हो। रति-सुख में प्रमोद करने से शीघ्र मुक्ति होती है, जो तुम मांगोगे वह मैं दूंगी, अतिप्रिय आलिंगन में मुझे ले लो। तुम्हें देखकर मैं प्रेम में बंध गई हूँ। जैसे आशा में मेरे नेत्रों को स्नेहपूर्ण जय प्राप्त हो गई हो। देर मत करो, शीघ्र ही अपनी पत्नी रूप में स्वीकृत करो और थोड़ा रति क्रीड़ा में रत हो जाओ।
घुत्तई-उसको सुनकर श्रेष्ठ-वीर कुमार कहता है-तुम अनुचित कहा करती हो। सज्जन पुरुष यह कार्य नहीं करते हैं क्योंकि श्रेष्ठ मुनि ने पूर्व में कहा है।
घत्ता मेरे द्वारा प्रसिद्ध श्रेष्ठ मुनिराज गणधर वरदत्त से श्रावक के व्रतों को ग्रहण किया गया है, दुर्धर-सुभट प्रद्युम्न की तरह कर्मों का नाश करूंगा।
3. वरांग कुमार के द्वारा स्वदार संतोष व्रत की रक्षा उनके वचन अनुसार मैंने प्राणों के अंत होने तक परस्त्री गमन का त्याग किया है। व्रत भंग करने से मनुष्य दुर्गति में पड़ता है, इस प्रकार मैं परस्त्री के प्रति रमण मन, वचन और काय से नहीं करता हूँ। जो मूर्ख परस्त्री में आसक्त होते हैं वे नरकगति के निवास को प्राप्त करते हैं।