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वरंगचरिउ यह काव्य देवराय के पुत्र संघाधिप होलिबर्म के अनुरोध से रचा गया था। कवि हरिचन्द ने अपने गुरु मुनि पद्मनन्दि का भक्तिपूर्वक स्मरण किया है। कवि के शब्दों में
___ "पउमणंदि मुणिणाह गणिंदहु चरणसरणगरु कइ हरिइंदहु।" मुनि पद्मनंदी दिगम्बर जैन शासन-संघ के मध्ययुगीन परम प्रभावक भट्टारक थे, जो बाद में मुनि अवस्था को प्राप्त हुए थे। ये मंत्र-तंत्रवादी भट्टारक थे। इन्होंने अपने प्रांतों में ग्राम-ग्राम में विहार कर अनेक धार्मिक, साहित्यिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक लोकोपयोगी कार्यों को सम्पन्न किया है। आप के संबंध में ऐतिहासिक घटना का उल्लेख मिलता है।' ब्रह्म वूचराज
ब्रह्म वूचराज या वल्ह मूलतः एक राजस्थानी कवि थे। इनकी रचनाओं में इनके कई नामों का उल्लेख मिलता है-वूचा, वल्ह, वील्ह या वल्हव। ये भट्टारक विजयकीर्ति के शिष्य थे। ब्रह्मचारी होने के कारण इनका 'ब्रह्म' विशेषण प्रसिद्ध हो गया। डॉ. कासलीवाल के अनुसार इनकी रची हुई आठ रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है?-मयणजुज्झ, संतोषतिलक, जयमाल, चेतन-पुद्गल-धमाल, भुवनकीर्ति गीत, टंडाणा गीत, नेमिनाथवसतु और नेमीश्वर का बारहमासा विभिन्न रागों में गाया है। इन रचनाओं में से केवल मयणजुज्झ एक अपभ्रंश रचना है। मयणजुज्झ एक रूपक काव्य है।
मदनयुद्ध में जिनदेव और कामदेव के युद्ध का वर्णन किया गया है, जिसमें अन्ततः कामदेव पराभूत हो जाता है। 'संतोषतिलक जयमाल' भी एक रूपक काव्य है। इसमें शील, सदाचार, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चरित्र, वैराग्य, तप, करुणा, क्षमा तथा संयम के द्वारा संतोष की उपलब्धि का वर्णन किया गया है। यह रचना वि.सं. 1591 में हिसार नगर में लिखकर पूर्ण हुई थी। यह एक प्राचीन राजस्थानी रचना है। इसका समय 16वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। ब्रह्य साधारण
ब्रह्म साधारण राजस्थानी सन्त थे। पहले वे पंडित साधारण के नाम से प्रसिद्ध थे। किन्तु बाद में ब्रह्मचारी बनने के कारण उन्हें ब्रह्म साधारण कहा जाने लगा। उन्होंने अपनी पूर्ववर्ती परम्परा में भट्टारक रतनकीर्ति, भट्टारक प्रभाचन्द्र, भट्टारक पद्मनन्दि, हरिषेण, नरेन्द्रकीर्ति एवं विद्यानन्दि का उल्लेख किया है और अपने आपको भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति का शिष्य लिखा है। भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति का राजस्थान से विशेष सम्बन्ध था और वे इसी प्रदेश में विहार किया करते थे। संवत् 1577 की एक प्रशस्ति में पं. साधारण का उल्लेख मिला है, जिसके अनुसार इन्हें
1. पं. परमानन्द शास्त्री, राज. के. जैन सन्त मुनि पद्मनंदी/अने., वर्ष-22, किरण-6, पृ. 285 2. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व, पृ. 71 3. राजस्थानी जैन साहित्य, पृ. 151