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वरंगचरिउ (मृणा)। त्रि. पु. सा. श्रीवंत। तस्यभार्या सुरुपदे।। एतान् मध्ये गुरुवार्या धैर्यगांभीर्य । चातुर्यादि गुणगणवि निर्मित शरीर शृंगारहारेण सा. तेजपाल तेनेदं शास्त्रं कृतं पश्चात् लिखाप्पि | मंडलाचार्य श्री भुवनकीर्ति। तत् शिष्य आचार्य श्री विशालकीर्ति तस्मै सदपात्रायप्रदत्तं। शुभंभवतु। ज्ञान्वान ज्ञानदानेन। निर्भयोदानतः । अन्नदानात् सुखीनित्यं । निर्त्याधिभेषजात् भवेत् ।।2 ||श्री।।।। लेखक पावकयो शुभं भवतु। A प्रति की विशेषताएं - 1. इस प्रति में नकार के स्थान पर नकार एवं णकार दोनों के प्रयोग मिलते है। यथा - नारि,
नारियल आदि। 2. इस प्रति में भी 'क्ख' की बनावट 'रक' एवं 'ग्ग' की 'ग्र' के रूप में पाई जाती है। 3. इस प्रति में संयुक्त 'छ' बनावट 7 यह है, लेकिन एकत्व या आदि में 2 इस रूप
में पाया जाता है। 4. दीर्घ ऊकार की बनावट 'अ' रूप में प्राप्त होती है। जैसे-कोअहलु, पाठ होना चाहिए था,
किन्तु है - 'कोऊहलु।। 5. भूलवश छूटे हुए पदों अथवा वर्गों को हंसपद देकर उन्हें हाँसिये में लिखा गया है तथा
वहां सन्दर्भ सूचक पंक्ति-संख्या अंकित कर दी गई है। यदि छूटा हुआ वह अंश ऊपर की ओर का है तो वह ऊपरी हाँसिये में और यदि नीचे की ओर का है तो नीचे की ओर वहीं पर पंक्ति संख्या भी दे दी गयी है। हाँसिये में अंकित पंक्ति के साथ (+) का चिह्न भी अंकित कर दिया गया है। कहीं-कहीं देशी शब्द एवं अन्य शब्दों के अर्थ भी =) का चिह्न अंकित कर सूचित किया है। 6. प्रति में अक्षरों की लिखावट 'सघन' है और कहीं-कहीं अक्षर को पढ़ने में आँखों पर बहुत
जोर देना पड़ता है। N, प्रति -
N, प्रति भट्टारक मुनीन्द्रकीर्ति दि. जैन सरस्वतीभवन, नागौर (राज.) से प्राप्त हुई। इसमें 56 पत्र हैं एवं प्रति पूर्ण है। इसका आकार 11 x 4.5 है। इसका ग्रंथ क्रमांक-441 है। ग्रंथ भण्डार की ग्रंथ-सूची से ज्ञात हुआ है कि वि. सं. 2008 वीर सं. 2478 ग्रंथ भण्डार में सतीशचन्द्र पाटनी को यह प्रति भेंट की थी। इसमें दीर्घ प्रशस्ति भी प्राप्त होती है। लिपिकाल वि. सं. १६०७, ज्येष्ठ शुक्ल 3 सोमवार को लिपि की है। इसमें अक्षर स्पष्ट दिखाई देते हैं।) यह प्रति प्राकृत मनीषी प्रोफेसर प्रेम सुमन जी के सहयोग से प्राप्त हुई थी।