Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तेरहवाँ अध्ययन - चित्त संभूत - इस अध्ययन में चित्त और संभूत दोनों भाइयों के पिछले छह जन्मों के जीवन के उतार - चढ़ाव की कहानी है। चित्त और संभूत पूर्वभव में भाई थे। दोनों ने संयम स्वीकार कर देवलोक में गये, वहाँ से चवकर चित्त का जीव पुरिमताल नगर में सेठ का पुत्र हुआ और दीक्षा ग्रहण कर मुनि बना। संभूत का जीव ब्रह्म राजा का पुत्र ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बना। चित्त का जीव जो मुनि बना था उसने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को संसार की असारता बताकर मुनिव्रत अंगीकार करने की प्रेरणा की। किन्तु ब्रह्मदत्त ने भोगों में आसक्त होने से मुनि की बात नहीं मानी। अन्ततः वह दुर्गति का मेहमान बना और मुनि ने शाश्वत सुखों को प्राप्त किये।
चौदहवाँ अध्ययन - इषुकारिय - इस अध्ययन में छह महापुरुषों का वर्णन है और यह घटना इषुकारनगर की है। अधिपति राजा का नाम इषुकार होने से इस अध्ययन का नाम इषुकारीय रखा गया है। सौधर्म देवलोक से चवकर छह जीव इस नगर में उत्पन्न हुए राजा इषुकार, रानी कमलावती, भृगु पुरोहित, उसकी पत्नी यशा तथा दो पुत्र देवभद्र और यशोभद्र। पुरोहित पुत्रों को जैन मुनियों को देखने से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और वे दीक्षा लेने के लिए तैयार हुए। पिताजी ने अपनी वैदिक संस्कृति के अनुसार अनेक युक्तियों से उन्हें समझाया, किन्तु पुत्रों के अकाट्य उत्तरों से पिता निरूत्तर हो गये। अतः दोनों पुत्र, माता-पिता एवं रानी कमलावती के उद्बोधन से राजा ने बोध को प्राप्त कर प्रव्रज्या ग्रहण की। इस प्रकार छह ही जीवों ने दीक्षा ग्रहण कर संयम तप की उत्कृष्ट आराधना कर मोक्ष प्राप्त किया। ___ पन्द्रहवाँ अध्ययन - सभिक्षुक - इस अध्ययन की प्रत्येक गाथा के अन्त में 'सभिक्खू' शब्द आया हुआ है। इसलिए इस अध्ययन का नाम 'सभिक्षुक' रखा गया है। इस अध्ययन में घरबार से रहित जो भिक्षा के द्वारा आजीविका का निर्वाह करता है। उसका संयमी जीवन निर्बाध चले, अतः संयमी जीवन के बाधक तत्त्वों का निरूपण और उनसे निरपेक्ष रहकर साधक को किस प्रकार आगे बढ़ना इसका सुन्दर मार्गदर्शन दिया गया है।
सोलहवाँ अध्ययन - ब्रह्मचर्य समाधि - ब्रह्मचर्य, साधक जीवन की अमूल्य निधि है। अतएव उसकी पूर्ण सुरक्षा कैसे हो सकती है? इस अध्ययन में ब्रह्मचर्य समाधि के विभिन्न दस स्थानों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसका पालन करने वाले को कैसे सुख
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