Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 9
________________ [8] *********************************************************** ग्रन्थियाँ हैं। इन्हीं आभ्यन्तर ग्रन्थियों के कारण बाह्य ग्रन्थियों का जन्म होता। जैन साधु वही हो सकता है जो इन ग्रन्थियों से रहित होता है। इस अध्ययन में इसका सुन्दर विवेचम किया गया है। सातवां अध्ययन - औरधीय - इस अध्ययन में मेमने, काकिणी और आम्रभोजी राजा का उदाहरण देकर बतलाया गया है कि इन्द्रियों - काम भोग के वशीभूत बना हुआ मानव अपने अमूल्य मानव भव को हार कर बाद में घोर पश्चात्ताप करता है। बाल अज्ञानी जीव प्रत्यक्ष क्षणिक सुख के पीछे अनन्त काल के नरकादि दुर्गतियों को संग्रह कर लेता है। तुच्छ मानवीय कामभोगों की आसक्ति के पीछे दिव्य देव सुख और अनन्त मोक्ष के सुखों को वह भूल जाता है। इस अध्ययन में इसी कारण प्रभु ने अधर्म को छोड़ कर धर्माचरण और आसक्ति को छोड़कर अनासक्त बनने का उपदेश फरमाया है। आठवां अध्ययन - कापिलीय - क्रोध, मान, माया आत्मा के एक-एक सद्गुण का नाश करता है पर लोभ सभी सद्गुणों का नाश करता है। इसी कारण लोभ को नीतिकारों ने ‘पाप का बाप' कहा है। इस अध्ययन में लोभ के दुष्परिणाम का सजीव चित्रण किया गया है। कपिल केवली के कथानक के माध्यम से बतलाया गया कि उसके अन्तर मन में लोभ का प्रवाह इतना बढ़ा कि चारमासा सोने के स्थान पर पूरा राज्य लेने पर भी सन्तुष्टि नहीं हुई। पर ज्योंही उनकी परिणिति बदली कि वे इन सब का त्याग कर निर्ग्रन्थ बन गये और केवलज्ञान, केवलदर्शन को प्राप्त किया तथा पांच सौ डाकुओं को प्रतिबोध दिया जिससे वे मुनि बने। प्रस्तुत अध्ययन में संसार की असोरता, ग्रन्थित्याग, साधना के आचारविचार आदि पर प्रकाश डाला गया है। . नववाँ अध्ययन - नमिराजर्षि - विदेह देश का राजा - नमिराज के प्रव्रज्या का निमित्त बना दाह-ज्वर। दाह-ज्वर के उपशमन के लिए रानियों द्वारा चंदन घिसने से राजा को कंगनों की टकराहट की आवाज से वेदना होने लगी। फलतः रानियों ने सौभाग्य सूचक एक-एक कंगन अपने हाथों में रखकर शेष कंगन उतार दिये। आवाज बंद होने पर राजा का अनुप्रेक्षात्मक चिन्तन चला, जिसके कारण उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वे अपने पूर्वभवों को देखने लगे और प्रव्रज्या अंगीकार करने का निर्णय कर लिया। नमिराज के अकस्मात् राज्य त्याग कर प्रव्रजित होने को उद्यत जानकर देवराज इन्द्र बाह्मण का रूप धारण कर उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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