Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ [9] ************************************************************** वैराग्य की परीक्षा लेने हेतु उनके समक्ष उपस्थित हुए और उनसे दस प्रश्न पूछे - नमिराजर्षि द्वारा उनका सुन्दर समाधान पाकर अपने असली रूप में प्रकट हुए, उन्हें वंदन नमस्कार किया। उनके उत्तम गुणों की प्रशंसा करते हुए अपने निज स्थान को चला गया। इस अध्ययन में प्रत्येक बुद्ध नमिराजर्षि के गृहत्याग से प्रव्रज्या तक का सुन्दर वर्णन है। दसवां अध्ययन - दुमपत्रक - इस अध्ययन में मानव जीवन की दुर्लभता एवं क्षणभंगूरता, शरीर और इन्द्रियों की धीरे-धीरे क्षीणता का दिग्दर्शन कराकर क्षणमात्र भी प्रमाद नहीं करने का एक-दो-तीन बार ही नहीं कहा प्रत्युत छत्तीस बार इस बात को दोहराया गया है। इस अध्ययन में यद्यपि प्रभु ने गौतम स्वामी को सम्बोधन किया, किन्तु गौतम स्वामी तो चार ज्ञान चौदह पूर्व के ज्ञाता अप्रमत्त साधक थे, उन्हें लक्ष्य करके हम संसारी लोगों को सतत् धर्म अनुष्ठान में जागृत रहने का उपदेश फरमाया है। ग्यारहवाँ अध्ययन - बहुश्रुत पूजा - प्रस्तुत अध्ययन में बहुश्रुत के गुणों का वर्णन किया गया है। जो आगमों का गहन और तलस्पर्शी ज्ञाता होने के साथ प्रकृति के भद्रिक, सरल, शास्त्रार्थ में पारंगत, बहुविज्ञ हो। प्रथम दो गाथाओं में बहुश्रुतता प्राप्त नहीं .... होने के कारणों का निरूपण किया है। तत्पश्चात् बहुश्रुतता प्राप्ति के आठ कारणों पर प्रकाश डाला गया है। तदनन्तर बहुश्रुतता प्राप्ति के बाधक अविनीतता का उल्लेख कर सुविनीत के लक्षण दिये गये हैं। अन्त में बहुश्रुत के गुणों का निरूपण करके इसकी फलश्रुति मोक्ष के शाश्वत् सुख बतलाये गये हैं। - बारहवाँ अध्ययन - हरिकेशीय - जैन दर्शन के आध्यात्मिक आराधना में जाति, वर्ण आदि का कोई बन्धन नहीं है। इस तथ्य का उद्घाटन इस अध्ययन से हो जाता है। हरिकेश चाण्डाल कुल में उत्पन्न हुए थे। किन्तु संयम और तप की उत्तम आराधना के दिव्य प्रभाव से वे देवताओं के द्वारा वंदनीय पूजनीय बन गये। इस अध्ययन में हरिकेश मुनि के जीवन का वर्णन कर भिक्षा के लिए ब्राह्मणों की यज्ञशाला में जाने तथा वहाँ याज्ञिक ब्राह्मणों द्वारा उन्हें अपमानित करने पर उनकी सेवा में रहने वाले यक्ष द्वारा याज्ञिक ब्राह्मणों को निश्चेत करना, याज्ञिक ब्राह्मणों द्वारा क्षमा मांगने पर मुनि द्वारा उपदेश फरमाना आदि का सुन्दर वर्णन किया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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