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अन्ति च्चिप्रारद्धो जइ दीसइ तम्मि चेव को दोसो। अकयं व संपइ गए किह कीरइ किह व एसम्मि ।। 421 ॥ पइसमयकज्जकोडीनिरविक्खो घडगयाहिलासोऽसि । पइसमयकज्जकालं थूलमइ घडम्मि लाएसि ॥ 422 ॥ को चरिमसमयनियमो पढमे च्चिय तो न कीरए कज्ज ।
नाकारणंति कज्जतंचेवं तम्मि से समए ।। 423 ॥ इन गाथाओं का सारार्थ इस प्रकार है
(417) नैश्चयिक दार्शनिक, जो सत्कार्यवादी है, के मत में अजात पदार्थ कभी उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि आकाश-कुसुम की तरह वह सर्वथा असत् है । यदि अजात पदार्थ भी उत्पन्न हो जाय तो आकाश-कुसुम के उत्पन्न होने में कौनसी बाधा है ?
(418) सत्कार्यवादी का यह भी कहना है कि असत्कार्यवादी ने जो कार्य का सदैव होते रहना' आदि दोष सत्कार्यवाद पर लगाये हैं, वे असत्कार्यवाद में भी आ जायेंगे। यही नहीं, असत्कार्यवाद में वे दोष अधिक दुष्परिहार्य होते हैं, क्योंकि असत् से उत्पत्ति मानने वाला स्पष्टतया यह स्वीकार करता है कि किसी समय कोई पदार्थ उत्पन्न हो सकता है ; अर्थात्, विश्व में किसी भी प्रकार की व्यवस्था का सर्वथा प्रभाव है । यह दोष सत्कार्यवाद में नहीं हैं क्योंकि विद्यमान वस्तु में किसी पर्याय विशेष की उत्पत्ति के माध्यम से कारण-कार्य की व्यवस्था को समझा जा सकता है। केवल इतना ही नहीं, सत्कार्यवाद की पृष्ठभूमि पर ही एक सुव्यवस्थित विश्व का ज्ञान सम्भव है। (देखें स्वौपज्ञ एवं कोट्याचार्य कृत वृत्ति)। असत्कार्यवादी का यह कथन कि 'अविद्यमान वस्तु को ही हम होते हुए देखते हैं', संगत नहीं है, कारण, क्या आकाश-कुसुम उत्पन्न होता हुआ दिखता है ?
(419-20) उसका यह कथन भी कि 'घटादि का क्रिया-काल दीर्घ होता है, युक्तिसंगत नहीं है । कारण घट तो केवल अन्त्य क्षण में ही दिखता है। कुम्भकार' के घट-संकल्प से लेकर घट-निष्पत्ति के काल तक के व्यवधान में जो भिन्न भिन्न प्रकार के अनेक कार्य प्रतिक्षण उत्पन्न होते रहते हैं, उनमें घट को देखना कैसे संगत हो सकता है ? मृत्पण्ड, शिवक आदि के उत्पाद के समय घट कैसे दिख सकता है ? पट की उत्पत्ति के समय क्या घट दिखना सम्भव है ?
(421) जिस समय में जिस वस्तु का प्रारंभ होता है, यदि उसी समय में वह वस्तु ही दिखे तो उसमें क्या असंगति है। उपान्त्य (अर्थात् अन्त्य क्षण से अव्यवहित पूर्ववर्ती) क्षण में वस्तु की उत्पति का प्रारंभ होता है एवं अन्त्य क्षण में, जो वस्तु का उत्पद्यमान क्षण है, वस्तु उत्पन्न होती है तथा दिखती है। उत्पद्यमान क्षण एवं उत्पन्न क्षण में कोई भेद नहीं है। वे अभिन्न हैं । यदि उत्पद्यमान (क्रियमाण) क्षण में भी वस्तु अनुत्पन्न (अकृत) रह जाय तो उसकी उत्पति कब होगी ? कारण
तुलसी प्रज्ञा
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