Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्यवहारी
व्यवहारज्ञ, व्यवहारी, व्यवहर्ता-ये समानार्थक हैं।
जो प्रियधर्मी हो, दृढ़धर्मी हो, वैराग्यवान हो, पापभीरु हो, सूत्रार्थ का ज्ञाता हो और राग-द्वेषरहित (पक्षपातरहित) हो वह व्यवहारी होता है।
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, अतिचारसेवी पुरुष और प्रतिसेवना का चिन्तन करके यदि किसी को अतिचार के अनुरूप आगमविहित प्रायश्चित्त देता है तो व्यवहारज्ञ (प्रायश्चित्तदाता) आराधक होता है।
द्रव्य, क्षेत्र आदि का चिन्तन किये बिना राग-द्वेषपूर्वक हीनाधिक प्रायश्चित्त देता है वह व्यवहारज्ञ (प्रायश्चित्तदाता) विराधक होता है। व्यवहर्तव्य
व्यवहर्तव्य/व्यवहार करने योग्य निर्ग्रन्थ हैं। ये अनेक प्रकार के हैं। निर्ग्रन्थ चार प्रकार के हैं१. एकरानिक होता है किन्तु भारीकर्मा होता है, अत: वह धर्म का अनाराधक होता है। २. एकरानिक होता है और हलुकर्मा होता है, अतः वह धर्म का आराधक होता है। ३. एक अवमरात्निक होता है और भारीकर्मा होता है, अतः वह धर्म का अनाराधक होता है। ४. एक अवमरात्निक होता है किन्तु हलुका होता है, अत: वह धर्म का आराधक होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थियाँ भी चार प्रकार की होती हैं। निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के हैं
१. पुलाक-जिसका संयमी जीवन भूसे के समान साररहित होता है। यद्यपि तत्त्व में श्रद्धा रखता है, क्रियानुष्ठान भी करता है, किन्तु तपानुष्ठान से प्राप्त लब्धि का उपयोग भी करता है और ज्ञानातिचार लगे-ऐसा बर्तन-व्यवहार रखता है।
२. बकुश-ये दो प्रकार के होते हैं-उपकरणबकुश और शरीरबकुश।
१. क- पियधम्मा दढधम्मा, संविग्गा चेव दज्जभीरू अ।
सुत्तत्थ तदुभयविऊ, अणिस्सिय ववहारकारी य॥ -व्य० भाष्य पीठिका, गाथा १४ ख-१. आचारवान्, २. आधारवान्, ३. व्यवहारवान्, ४. अपब्रीडक, ५. प्रकारी, ६. अपरिश्रावी, ७. निर्यापक,
८. अपायदर्शी, ९. प्रियधर्मी, १०. दृढ़धर्मी। -ठाणं० १० सू० ७३३ ग-व्यव० उ० १० भाष्य गाथा २४३/२४५/२४६/२४७/२९८/३०० २. गाहा-जो सुयमहिज्जइ, बहुं सुत्तत्थं च निउणं विजाणाइ।
कप्पे ववहारंमि य, सो उ पमाणं सुयहराणं ॥ कप्पस्स य निजुत्तिं ववहारस्स व परमनिउणस्स।
जो अत्थतो वियाणइ, ववहारी सो अणुण्णातो ॥ -व्यव० उ० १० भाष्य गाथा ६०५,६०७ ३. जो दीक्षापर्याय में बड़ा हो ४. जो दीक्षापर्याय में छोटा हो ५. ठाणं० ४, उ०३, सूत्र ३२०