Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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४ ]
वग्गो दुतियो
पुराणमासो थेरो
पामुज्जबहुलो भिक्खु धम्मे बुद्धपवेदिते । अधिगच्छे पदं सन्तं संखारूपसमं सुखन्ति ॥ ११ ॥
चूलगक्च्छो थेरो
पञ्ञाबली सीलवतूपपन्नो समाहितो झानरतो सतीमा ।
यदत्थियं भोजनं भुञ्जमानो कझखेत कालं इध वीतरागो 'ति ॥१२॥
महागच्छो रो
नीलब्भवण्णा रुचिरा सीतवारी सुचिन्धरा ।
गोपइन्दकसञ्छन्ना ते सेला रमयन्ति मन्ति ॥ १३ ॥
वनवच्छत्थेरो
उपज्झायो मं अवचासि इतो गच्छामि सीवक गामे मे वसति कायो अर मे गतो मनो
से मानको पि गच्छामि ; नत्थि संगो विजानतन्ति ॥ १४ ॥
वनवच्छस्स थेरस्स सामणेरो
पञ्च छिन्दे पञ्च जहे पञ्च चुत्तरि भावये ;
पञ्चसंघातिगो भिक्खु ओघतिष्णो 'ति वुच्चतीति ॥ १५ ॥ कुण्डधानो थेरो
यथापि भद्दो आजञ्ञो नङ्गला वत्तनी सिखी गच्छति अप्पकसिरेन, एवं रत्तिन्दिवा मम गच्छन्ति अप्पकसिरेन सुखे लद्धे निरामिसे 'ति ॥ १६ ॥
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