Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

View full book text
Previous | Next

Page 61
________________ ५० पञ्चनिपातो भिक्खु सीवथिकं गत्वा अद्दमं इत्थमुज्झितं अपविद्धं सुसानस्मि खज्जन्तिं किमिही फुटं ।। ३१५ ।। यं हि एके जिगुच्छन्ति मतं दिस्वान पापकं, कामरागो पातुरहू अन्धो व सवती अहं ॥ ३१६ ॥ ओरं ओदनपाकम्हा तम्हा ठाना अपक्कमिं; सतिमा सम्पजानो 'हं एकमन्तं उपाविसि ॥ ३१७ ॥ ततो मे ....(३१८,३१९ - २६९,२७०) ।।३१८-३१९।। राजदत्तो थेरो अयोगे युञ्जमत्तानं पुरिसो किच्चमिच्छतो चरं चे नाधिगच्छेय्य, तं मे दुब्भगलक्खणं ॥ ३२०॥ अब्बूळहं अगतं विजितं एकञ्चे ओस्सजेय्य कली व सिया; सब्बानि पि चे ओस्सज्जेय्य अन्धो व सिया यहि कयिरा . (= २२६ ) ॥३२२॥ ... यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं अगन्धकं, एवं सुभासिता वाचा अपूला होति अकुब्बतो ॥३२३॥ यथापि रुचिरं पुप्फं वण्णवन्तं सगन्धकं एवं सुभासिता वाचा स- फला होति सकुब्बतो 'ति ॥ ३२४ ॥ सुभूतो थेरो वस्सति देवो यथा सुगीतं, छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता तस्सं विहरामि वूपसन्तो, अथ चे पत्थयसि पवस्स देव ।। ३२५ ॥ वसति देवो यथा सुगीतं छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, तस्सं विहरामि सन्तचित्तो-प- - तस्सं विहरामि - समविसमस्स अदस्सनतो ।। ३२१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138