Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 89
________________ तेरसनिपातो याहु र? समुक्कट्ठो रञो अगस्स पद्धगु स्वाज्ज धम्मेसु उन्कंट्ठो सोणो दुक्खस्स पारगु ॥६३२।। पञ्च छिन्दे पञ्च जहे पञ्च चुत्तरि भावये; पञ्च संङगातिगो भिक्खु ओघतिण्णो 'ति वुच्चति ॥६३३।। उन्नळस्स पमत्तस्स वाहिरासस्स भिक्खुनो सील समाधि पञ्जा च पारिपूरिं न गच्छति ॥६३४॥ यं हि किच्चं तदपविद्धं, अकिच्चं पन कयिरति; उन्नळानं पमत्तानं तेसं वड्ढन्ति आसवा ॥६३५॥ येसञ्च सुसमारद्धा निच्चं कायगता सति, अकिच्चन्ते न सेवन्ति किच्चे सातच्चकारिनो सतानं सम्पजानानं अत्थं गच्छन्ति आसवा ।।६३६।। उजुमग्गम्हि अक्खाते गच्छथ मा निवत्तथ अत्तना चोदयत्तानं, निब्बानं अभिहारये ॥६३७।। अच्चारद्धम्हि विरियम्हि सत्था लोके अनुत्तरो वीणोपमं करित्वा मे धम्म देसेसि चक्खुमा ॥६३८॥ तस्साहं वचनं सुत्वा विहासिं सासने रतो समतं पटिपादेसिं उत्तमत्थस्स पत्तिया, तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनं ।।६३९॥ नेक्खम्मे अधिमुत्तस्स पविवेकञ्च चेतसो अब्यापज्झाधिमुत्तस्स उपादानक्खयस्स च ॥६४०।। तण्हक्खयाधिमुत्तस्स असम्मोहञ्च चेतसो दिस्वा आयतनुप्पादं सम्मा चित्तं विमुच्चति ॥६४१॥ तस्सा सम्मा विमुत्तस्स सन्तचित्तस्स भिक्खुनो कतस्स पटिचयो नत्थि, करणीयं च विज्जति ॥६४२।। ७८ ] Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com

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