Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 115
________________ थेर-गाथा १०४ ] गामे वा यदि वारजे निन्ने वा यदि वा थले, यत्थ अरहन्तो विहरन्ति तं भूमिं रामणेय्यकं ॥९९१॥ रमणीया अरञ्जानि, यत्थ न रमती जनो, वीतरागा रमिस्सन्ति न ते कामगवेसिनो ।। ९९२ ।। निधीनं व पवत्तारं यं पस्से वज्जदस्सिनं निग्गय्हवादिं मेधावि, तादिसं पण्डितं भजे; तादिसं भजमानस्स सेय्यो होति न पापियो ॥९९३॥ ओवदेय्यानुसासेय्य असब्भा च निवारये, सतं हि सो पियो होति असतं होति अप्पियो ॥ ९९४॥ अञ्ञ्ञस्स भगवा बुद्धो धम्मं देसेसि चक्खुमा ; धम्मे देसियमानम्हि सोतमोधेतिमत्थिको ॥९९५॥ तम्मे अमोघं सवनं, विमुत्तो' म्हि अनासवो नेव पुब्बेनिवासाय न पि दिब्बस्स चक्खुनो ॥९९६॥ चेतोपरियायइद्धिया चुतिया उपपत्तिया सोतघात्तुविसुद्धिया पणिधि मे न विज्जति ॥९९७॥ रुक्खमूलं व निस्साय मुण्डो संघाटिपारुतो पञ्ञाय उत्तमो थेरो उपतिस्सो' व झायति ॥९९८॥ अवितक्कं समापन्नो सम्मासम्बुद्धसावको अरियेन तुण्हिभावेन उपेतो होति तावदे ॥९९९॥ यथापि पब्बतो सेलो अचलो सुपतिट्ठितो, एवं मोहक्खया भिक्खु पब्बतोव न वेधति ॥१०००॥ अनङ्गणस्स पोसस्स निच्वं सुचिगवेसिनो वालग्गमत्तं पापस्स अब्भामत्तं व खायति ॥ १०१ ॥ नाभिनन्दामि मरणं नाभिनन्दामि जीवितं, निक्खिपिस्सं इमं कायं सम्पजानो पतिस्सतो ॥१००२।। भतको यथा ।।१००३॥ ---निब्बिसं उभयेन मिदं मरणं एव नामरणं पच्छा वा पुरे वा; पटिपज्जथ मा विनस्सथ, खणो वे मा उपच्चगा ॥१००४ ।। नगरं यथा पच्चन्तं गुत्तं सन्तरबहिरं एवं गोपेथ अत्तानं, खणो वे मा उपच्चगा, खणातीता हि सोचन्ति नरयम्हि समप्पिता ।। १००५।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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