Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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सारिपुत्तो थेरो उपसन्तो उपरतो मन्तभाणी अनुद्धतो धुनाति पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो ॥१००६॥ उपसन्तो -पअब्बहि पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो ।।१००७॥ उपसन्तो अनायासो विप्पसन्नमनाविलो कल्याणसीलो मेधावी दुवस्सन्तकरो सिया ॥१००८॥ न विस्ससे एकतियेसु एवं अगारिसु पब्बजितेसु चापि; साधु पि हुत्वान असाधु होन्ति, असाधु हुत्वा पुन साधु होन्ति ॥१००९।। कामच्छन्दो च व्यापादो थीनमिद्धञ्च भिक्खुनो उच्च विचिकिच्छा च पञ्च ते चित्तकेलिसा ।।१०१०॥ यस्स सक्करियमानस्स असक्कारेन चूभयं समाधि न विकम्पति अप्पमादविहारिनो ॥१० ११॥ तं झायिनं साततिकं सुखुमदिट्ठिविपस्सकं उपादानक्खयारामं आहू सप्पुरिसो इति ॥१०१२॥ महासमुद्दो पथवी पब्बतो अनिलो पि च उपमाय न युज्जन्ति सत्थु वरविमुत्तिया ॥१०१३॥ चक्कानुवत्तको थेरो महाञाणी समाहितो पथवापग्गि समानो न रज्जति न दुस्सति ॥१०१४॥ पञ्ञापारमितं पत्तो महाबुद्धि महामुनि अजळो जळसमानो सदा चरति निब्बुतो ॥१०१५।। परिचिण्णो मया सत्था -प- ॥१०१६।। सम्पादेथप्पमादेन, एसा मे अनुसासनी; हन्दाहं परिनिब्बिस्म, विप्पमुत्तों म्हि सब्बधीति ॥१०१७॥
सारिपुत्तो थेरो पिसुनेन च कोधनेन मच्छरिना च विभूतिनन्दिना सखितं न करेय्य पण्डितो; पापो कापुरिसेन संगमो ॥१०१८॥ सद्धेन च पेसलेन च पञ्जवता बहुस्सुतेन च । सखितं हि करेय्य पण्डितो; भद्दो सप्पुरिसेन संगमो ॥१०१९॥ पस्स चित्तकतं बिम्बं–प-॥१०२०॥
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