Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 112
________________ तिंसनिपातो पासादिके बहू दिस्वा भावितत्ते सुसंबुते इसि पण्डरसोगोतो अपुच्छि फुस्ससव्हयंः ॥९४९॥ किंछन्दा किमधिप्पाय किमाकप्पा भविस्मरे अनागतम्हि कालम्हि तं मे अक्खाहि पुच्छितो ॥९५०॥ सुणोहि वचनं मय्हं इसि पण्डरसव्हय, सक्कच्चं उपधारेहि, आचिक्खिस्साम्यनागतं ॥९५१।। कोधना उपनाही च मक्खी थम्भी सठा बह इस्सुकी नानावादा च भविस्सन्ति अनागते ॥९५२।। अज्ञातमानिनो धम्मे गम्भीरे तीरगोचरा लहुका अगरु धम्मे अझमझमगारवा ॥९५३॥ बाहू आदीनवा लोके उप्पज्जिसन्ति' नागते; सुदेसितं इमं धम्मकिलिसिस्सन्ति दुम्मती ॥९५४।। गुणहीनापि संघम्हि वोहरन्ति विसारदा वलवन्तो भविस्सन्ति मुखरा अस्सुताविनो ॥९५५।। गुणवन्तो पि संघम्हि ओरहरन्ता यथत्थतो दुब्बला ते भविस्सन्ति हिरिमना अनत्थिका ॥९५६।। रजतं जातरूपञ्च खेत्तं वयं अजेळकं । दासीदासञ्च दुम्मेधा सादियिस्सन्ति'नागते ।।९५७।। उज्झानसजिनो बाला सीलेसु असमाहिता उन्नळा विचरिस्सन्ति कलहाभिरता मगा ॥९५८॥ उद्धता च भविस्सन्ति नीलचीवरपास्ता; कुहा थद्धा लपा सिङगी चरिस्सन्त्यरिया विय ॥९५९।। तेलसंहेहि केसेहि चपला अझनक्खिका रथियाय गम्मिस्सन्ति दन्तवण्णकपारुता ॥९६०। [ १०१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com

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