Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 68
________________ सप्पदासत्थेरो [ ५७ यो वे तं सहती जम्मि तण्हं लोके दुरच्चयं, सोका तम्हा पपतन्ति उदविन्दु व पोक्खरा ॥४०१॥ तं वो वदामि भदं वो यावन्तेत्थ समागता तण्हाय मूलं खणथ उसीरत्थो व बीरणं, मा वो नळं व सोतो व मारो भजि पुनप्पुनं ॥४०२।। करोथ बुद्धवचनं खणो वे मा उपच्चगा, खणातीता हि सोचन्ति निरयम्हि समप्पिता ॥४०३।। पमादो रजो, पमादानुपतितो रजो, अप्पमादेन विज्जाय अब्बहे सल्लमत्तनोति ॥४०४॥ मालङ्क्यपुत्तो थेरो पण्णवीसतिवस्सानि यतो पब्बजितो अहं अच्छरासंघातमत्तम्पि चेतो सन्ति मनज्झगं ॥४०५॥ अलद्धा चित्तस्सेकग्गं कामरागेन अद्दितो बाहा पग्गयह कन्दन्तो विहारानुपनिक्खमि ॥४०६॥ सायं वा आहरिस्सामि को अत्था जीवितेन मे, कथं हि सिक्खं पच्चक्खं कालं कुब्बेथ मादिसो ॥४०७॥ तदाहं खुरमादाय मञ्चकम्हि उपाविसिं, परिनीतो खुरो आसि धमनि छेत्तुमत्तनो ॥४०८॥ ततो मे. . . . (४०९,४१०=२६९,२७०) ॥४०९॥-४१०॥ सप्पदासत्थेरो उहाहि निसीद कातियान मा निद्दाबहुलो अहु जागरस्सु, मा तं अलसं पमत्तबन्धु कूटेनेव जिनातु मच्चुराजा ॥४११॥ सयथापि महासमुद्दवेगो एवं जातिजरातिवत्तते तं, सो करोहि सुदीपमत्तनो त्वं, न हि ताणं तव विज्जतेव अनं ॥४१२॥ सत्था हि विजेसि मग्गमेतं सङगा जातिजराभया अतीतं, पुब्बापररत्तमप्पमत्तो. अनुयुञ्जसु दळहं करोहि योगं ॥४१३॥ पुरिमानि पमुञ्च बन्धनानि संघाटीखुर, मुण्डभिक्खभोजी मा खिड्डारतिञ्च मा निइं अनुयुजित्थ झियाय कातियान ॥४१४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com

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