Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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थेरगाथा
यस्स सब्रह्मचारीसु....... न विरूहति सद्धम्मे खेत्ते बीजं व पूतिकं ॥३८८।। यस्स सब्रह्मचारीसु......... . . . . . . आरका होति निब्बाना धम्मराजस्स सासने ॥३८९॥ यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो उपलब्भति, न विहायति सद्धमा मच्छो बन्होदके यथा ॥३९०॥ यस्स ......... सो बिरूहति सद्धम्मे खेत्ते बीजं व भद्दकं ॥३९१।। यस्स ........... . . . . . . . . . . . . . . . सन्तिके होति निब्बानं धम्मराजस्स सासने 'ति ॥३९२॥
महानागो थेरो कुल्लो सीवथिकं गन्त्वा असं इत्थिमुज्झितं अपविद्धं सुसानस्मि खज्जन्ति किमिही फुटं ॥३९३।। आतुरं असुचि पूर्ति पस्स कुल्ल समुस्सयं उग्घरन्तं पग्घरन्तं बालानं अभिनन्दितं ॥३९४॥ धम्मादासं गहेत्वान जाणदस्सनपत्तिया पच्चवेक्खिं इमं कायं तुच्छं सन्तरबाहिरं ॥३९५॥ यथा इदं तथा एतं यथा एतं तथा इदं यथा अधो तथा उद्धं, यथा उद्धं तथा अघो ॥३९६॥ यथा दिवा तथा रत्ति यथा रत्ति तथा दिवा यथा पुरे तथा पच्छा यथा पच्छा तथा पुरे ॥३९७।। पञ्चङगिकेन तुरियन न रति होति तादिसी यथा एकग्गचित्तस्स सम्मा धम्मं विपस्स तोति ॥३९८॥
__ कुल्लो थेरो मनुजस्स पमत्तचारिनो तण्हा वड्ढति माळुवा विया, सो पलवती हुराहुरं फलमिच्छं व वनस्मि वानरो ॥३९९॥ यं एसा सहती जम्मी तण्हा लोके विसत्तिका, सोका तस्स पवड्ढन्ति अभिवड्ढं व भीरणं ॥४००॥
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