Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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वग्गो पञ्चमो
अहो बुद्धा अहो धम्मा अहो नो सत्थुसम्पदा यत्थ एतादिसं धम्मं सावको सच्छिकाहिति ॥ २०१ ॥ असंखेय्येसु कप्पेसु सक्कायाधिगता अहं, तेसं अयं पच्छिमको, चरिमो, यं समुस्सयो जातिमरणसंसारो, नत्थि दानि पुनब्भवो 'ति ॥२०२॥
कुमारकस्सपो थं
यो हवे दहदो भिक्खु युञ्जति बुद्धसासने,
जागरो पति सुत्तेसु, अमोघन्तस्स जीवितं ॥ २०३ ॥ तस्मा सद्धञ्च सीलञ्च पसादं धम्मदस्सनं
अनुयुञ्जेथ मेधावी सरं बुद्धान सासनन्ति ॥ २०४॥
धम्मपालो थेरो
कस्सिन्द्रियानि समयं गतानि अस्सा
यथा सारथिना सुदन्ता
देवापि
पहनमानस अनासवस्स तस्स पियन्ति तादिनो ॥२०५॥
महिन्द्रियानि समथं गतानि अस्सा यथा सारथिना सुदन्ता पहीतमानस्स अनासवस्स देवापि मय्हं पियहन्ति तादिनोति ॥ २०६॥
ब्रह्मालि थेरो
छविपापक चित्तभद्दक मोघराज ससतं समाहितो,
हेमन्तिकसीतकालरत्तियो, भिक्खु त्वं 'सि कथं करिस्ससि ||२०७|| सम्पन्नसस्ता मगघा केवला इति मे सुतं; पलालच्छन्नको सेय्यं यथ
सुखजीविनो 'ति ॥ २०८॥
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