Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ थेर-गाथा इसिदिन्नो थेरो देवो च वस्सति देवो च गळगळायति एकको चाहं भेरवे बिले विहरामिः ३६ ] तस्स मय्हं एककस्स भेरवे बिले विहरतो नत्थि भयं वा छम्भितत्तं वा लोमहंसो वा ॥१८९॥ धम्मता ममेसा यस्स मे एककस्स भेरवे बिले विहरतो नत्थि भयं वा छम्भितत्तं वा लोमहंसोवा'ति ॥ १९०॥ सम्बुलकच्चानो थेरो कस्स सेळूपमं चित्तं ठितं नानुपकम्पति विरत्तं रजनीयेसु कुप्पनीये न कुप्पति यस्सेवं भावितं त्रितं कुतो तं दुक्खमेस्सति ॥१९१॥ मम सेलूपमं चित्तं ठितं नानुपकम्पति विरत्तं रजनीयेसु कुप्पनीये न कुप्पति ममेवं भावितं चित्तं, कुतो मं दुक्ख मेस्सतीति ॥१९२॥ खितको थेरो न ताव सुपितुं होति रत्ति नक्खत्तमालिनी, पटिजग्गितुमेवेसा रत्ति होति विजानता ॥१९३॥ हत्थिक्खन्धावपतितं कुञ्जरो चे अनुक्क संगामे मे मतं सेय्यो यञ्चे जीवे पराजितो 'ति ॥ १९४॥ सोणो पोटिरियपुत्तो ॥ १९५॥ पञ्च कामगुणे हित्वा पियरूपे मनोरमे सद्धाय अभिनिक्खम्म दुक्खस्सन्तकरो भवे नाभि नन्दामि मरणं नाभि नन्दामि जीवितं कालञ्च पटिकखामि सम्पजानो पतिस्सतो 'ति ॥ १९६॥ सिभ अम्बपल्लवसंकासं अंसे कत्वान चीवरं निसिन्नो हत्थिगीवायं गामं पिण्डाय पाविसि ॥१९७॥ हत्यिक्खन्घतो ओग्य्ह संवेगं अलभिन्तदा सोहं दित्तो तदा सन्तो, पत्तो मे आसवक्खयो'ति ॥ १९८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138