Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
View full book text
________________
चतुकनिपातो
अलंकता सुवसना मालिनी चन्दनुस्सदा मज्झे महापथे नारी तुरिये नच्चति नट्टकी ॥२६७॥ पिण्डिकाय पविट्ठो 'हं गच्छन्तो नं उदिक्खिसं अलंकतं सुवसनं मच्चपासं व ओड्डितं ॥२६८॥ ततो मे मनसीकारो योनिसो उदपज्जथा आदीनवो पातुरहू, निब्बिदा समतिट्ठत, ॥२६९।। ततो चित्तं विमुच्चि मे, पस्स धम्मसुधम्मतं । तिस्सो विज्जा अनुप्पत्ता, कतं बुद्धस्स सासनन्ति ॥२७॥
नागसमाल थेरो अहं मिद्धेन पकतो विहारा उतनिमि; चङकमं अभिरुहन्तो तथेव पपतिं छमा ॥२७॥ गत्तानि परिमज्जित्वा पुन पारुयह चकमं चङकमे चकर्मि सो 'हं अज्झत्तं सुसमाहितो ॥२७२॥ ततो मे......(२७३,२७४ =२६९,२७०) ॥२७३-२७४।।
भगुथेरो परे च न विजानन्ति मयमेत्थ यमामसे; ये च तत्थ विजानन्ति ततो सम्मन्ति मेधगा ॥२७५॥ यदा च अविजानन्ता इरियन्त्यमरा विया, विजानन्ति च ये धम्म आतुरेस अनातुरा ॥२७६।। यं किञ्चि सिथिलं कम्मं संकिलिट्ठञ्च यं वतं संकस्सरं ब्रह्मचरियं, न तं होति महप्फलं ॥२७७॥ यस्स सब्रह्मचारीसु गारवो नूपलब्भति, आरका होति सद्धम्मा नभं पुथविया यथा 'ति ॥२७८॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138