Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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वग्गो ततियो
खन्धा मया परिझाता, तण्हा मे सुसमूहता, भाविता मम बोज्झगा, पत्तो मे आसवक्खयो ॥१६१॥ सोहं खन्धे परिज्ञाय अब्बहित्वान जालिनि भावयित्वान बोज्झङ्गे निब्वायिस्सं अनासवो'ति ॥१६२।।
उत्तरो थेरो पनादो नाम सो राजा यस्स यूपो सुवण्णयो तिरियं सोळसपब्बेधो उब्भमाह सहस्सधा ॥१६३॥ सहस्सकण्डु सतभेण्डु धजालु हरितामयो, अनच्चुं तत्थ गन्धब्बा छ सहस्सानि सत्तधा'ति ॥१६४॥
भद्दजि थेरो सतिमा पञवा भिक्खु आरद्धबलवीरियो पञ्चकप्पसतानाहं एकरत्ति अनुस्सरि ॥१६५॥ चत्तारो सतिपट्ठाने सत्त अट्ठ च भावयं पञ्च कप्पसता नाहं एकरत्ति अनुस्सरिन्ति ॥१६६।।
सोभितो थेरो यं किच्चं दळ्हविरियेन यं किच्चं बोधुमिच्छता करिस्सं नावरज्झिस्सं, पस्स विरियपरक्कम ॥१६७।। त्वञ्च मे मग्गमक्खाहि अञ्जसं अमतोगधं; अहं मोनेन मोनिस्सं गगासोतो व सागरन्ति ॥१६८॥
वल्लियो थेरो केसे मे ओलिखिस्सन्ति कप्पको उपसंकमि,
ततो आदासं आदाय सरीरं पच्चवेक्खिसं ॥१६९॥ ३२ ]
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