Book Title: Thergatha
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ एकनिपातो वग्गो पठमो छन्ना मे कुटिका सुखा निवाता, वस्स देव यथा सुखं; चित्तं मे सुसमाहितं विमुत्तं, आतापी विहरामि, वस्सदेवा 'ति ॥ १॥ इत्थं सुदं आयस्मा सुभूति थेरो गाथमभासित्था'ति । उपसन्तो उपरतो मन्तभाणी अनुद्धतो धुनाति पापके धम्मे दुमपत्तं व मालुतो 'ति ॥२॥ इत्थं सुदं आयस्मा महाकोट्ठिकथेरो गाथमभासित्थ । पञ्ञ इमं पस्स तथागतानं, अग्गि यथा पज्जलितो निसीथे । आलोकदा चक्खुददा भवन्ति ये आगतानं विनयन्ति कखन्ति ॥३॥ इत्थं सुदं आयस्मा कखारेवतो थेरो गाथं अभासित्थ । सब्भिरेव समासेय पण्डितेहत्थदस्सिभिः २ ] अत्थं महन्तं गम्भीरं दुद्दसं निपुणं अणुं धीरा समधिगच्छन्ति अप्पमत्ता विचक्खणा 'ति ।।४।। यस्मा पुण्णो मन्तानिपुत्तो रो यो दुद्दमयो दमेन दन्तो दब्बो सन्तुसितो वितिण्णकखो विजितावि अपेतभेरवो हि दब्बो सो परिनिब्बुतो ठितत्तो 'ति ॥५॥ यस्माद थे यो सीतवनं उपागा भिक्खु एको सन्तुसितो समाहितत्तो विजितावि अपेतलोमहंसो रक्खं कायगतासति धितीमा 'ति ॥ ६॥ यस्मा सीतवनियो थेरो यो पानुदि मच्चुराजस्स सेनं नळसेतुं व सुदुब्बलं महोघो विजितावि अपेतभेरवो हि दन्तो सो परिनिब्बुतो ठितत्तो 'ति ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 138