________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [7 Nowwwwwwwwwwwwwwwwwww इन्द्रानी श्रीजिन देव लैय, माता त्रिशलाकी गोद देय। पूजे माता अरु तात पांय, निजनिज थानक सब देव जांय॥ चौबीस जिनेश्वर एकबार, तिनके पद प्रणमूं हरष धार। मंगल करता मंगल स्वरूप, तिनको सिर नावत सरव भूप॥ दोहा-जिनवाणी गुण अगम है, कोई न पावै पार। करूं मंगलाचरण मैं, तुच्छ बुद्धि अनुसार // 47 // मद अवलिप्त कलोल छन्द नमूं सारदा माय परन सुन्दर सुखदाई, मोह तिमिरके नाश करनको रविसम गाई। शिव मारग दरशाय करें सब कारज जी के, जो धारें उरमाहिं सु जिनवानी गुण नीके // 48 // दोहा-श्रीगुरुचरण प्रणाम कर, मन वच सीस नवाय। मंगलमइ मंगल करण, जग जीवन सुखदाय॥४९॥ मद अवलिप्त कपोल छन्द धरै दिगम्बर रूप भूप सब पदको परसैं हिये, परम वैराग मोक्षमारगको दरसैं। जे भवि सेवें चरण तिनैं सम्यक् दरसावै, करें आप कल्याण सु बारह भावन भाव॥५०॥ पंच महाव्रत धरै बरै शिव सुन्दर नारो, निज अनुभव रस लीन परम पदके सुविचारी। दस लक्षण जिन धर्म गहैं रत्नत्रय धारी, ऐसे श्री मुनिराज चरणपर जग बलिहारी॥५१॥