Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ EDBAN श्री तेरहद्वीप पूजा विधान សសសសសសសសសសសសសសសសសសស बीस पांच गुण धरै अंग पूरव सुखदाई, सो उवझाय सुजान तिनै हम सीस निवाई // 36 // आठ वीस गुण सहित सर्व जीवन उपकारी, धरै दिगम्बर रूप साधुपदके अधिकारी। इनको सीस निवाय ध्याय उर अन्तर भाई, करो मंगलाचरण सुभविजनको सुखदाई // 37 // श्री आदिनाथजीकी स्तुति दोहा-भए वंश इक्ष्वाकमें, श्री आदीश्वर देव। सुर नर मिल पूजत सदा, कीजे तिनको सेव॥३८॥ पद्धडी छन्द श्री नाभिराय मरुदेवि जान, तिन उर उपजे भगवान आन। इन्द्रादिक सब मिल हरष धार, गर्भादि जन्म उत्सव विचार॥ मनमथ मदमर्दनको सुसूर, सब क्रोध कषाय कियो है दूर। चारों सो घातिया किये नाश, तब केवलज्ञान भयो प्रकाश॥ दरशो सब लोकालोक जान, तिन कहो धरम वर्णन वखान। जनमुखते बानी खिरै सार, सुनकै भवि भवदध भए पार॥ ऐसे श्री रिषभ जिनेशराय, कैलाश शिखरतें मोक्ष पाय। जै जै त्रिभुवनके नाथराय,भुवि लाल' नमत भुवी सीसलाय॥ अन्तिम श्री वीर जिनेश देव, सुरनर नित तनकी करत सेव। तिनको अब वर्णन करूं गाय,संक्षेप मात्र बुद्धि तुच्छ पाय॥ प्रभु नाथवंशके जनम लीन सिद्धारथ नृप बहु दान दीन। ले गये सुदर्शन मेरु इन्द्र, कर जनम महोत्सव सब सुरिंद्र॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 338