Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 14
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [5 ANNAasararararaswarSaraswarwa दोहा-ज्ञान अनंतानंत है, दर्श अनन्तानन्त। वीर्य अनन्तानन्त है, सुख अनन्तानन्त // 28 // इति अर्हन्त परमेष्ठी के छयालीस गुण सम्पूर्णम्। ___अथ सिद्ध परमेष्ठी के अष्ट गुण वर्णन दोहा-अब सिद्धनके आठगुण, कहुँ यथारथ जान। जाके सुनत बखानते, होय सरव कल्याण // 29 // चौपाई छन्द क्षायक सम्यक् गुण मन माना, सों समत्तगुण निश्चय जाना। केवलज्ञान ज्ञान परकाशो, लोकालोक सरव प्रतिभासो॥ लोक अलोक सरव दरशायो, सो दर्शन सिद्धनके पायो। शक्ति अनन्त धरै वरनामी, सो अनन्त वीरजके स्वामी॥ एकबार सब ज्ञेय बताये, सो सुहमत देवगुण गाये। एक सिद्ध अवगाहन जामैं, राजै सिद्ध अनन्ते तामैं। जा तनसे जो सिद्धपद रायो,ये ही अगुरुलघु गुन मन मायो। बाधा रहित विराजित ऐसे, यह अद्भुत गुण भाषू कैसे॥ और अनन्ते गुणके धारी, तिन सिद्धनको धोक हमारी। तिनको शीस नाय गुण गाए, हरषर भविजन मन भाए॥ दोहा-कहे सिद्ध महाराजके, यह अद्भुत गुण आठ। तिनको सु मरण भवि करें, कीजे निशदिन पाठ॥३५॥ मद अवलिप्त कपोल छन्द गुण छत्तिसको लिये विराजित श्री आचरज, धरै परम वैराग भाव धारै शुभ आरज।

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